(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- कोरोना काल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका फ्रंट लाइन वर्कर्स के रूप अहम रही। इस दौरान कोविड-19 से संबंधित कार्यों का निष्पादन करते हुए आईसीडीएस की योजनाओं व दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन किया है। संक्रमण काल में भले ही आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन बन्द रहा, लेकिन पोषण से सम्बंधित सभी योजनाएं संचालित रही और लाभुकों को उसका लाभ मिलता रहा। गत दिनों सेविकाएं घर-घर दस्तसक देकर गर्भवती महिलाओं व कुपोषित बच्चोंल को रेडी-टू-ईट खाद्य सामग्री का वितरण तो कर ही रही है, साथ ही महिलाओं व बच्चों को पोषण से संबंधित जानकारी भी दे रही हैं। इसके अलावा पूर्व प्राथमिक शिक्षा (ईसीसीई) के तहत बच्चों को पाठ भी पढ़ा रही हैं। ताकि, आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन स्थगित होने के कारण बच्चों के मन में लॉकडाउन का असर न पड़े और वो घर पर ही रहने से उनके मन में उबाऊपन न हो सके।
गर्भवती महिलाओं व प्रसूताओं को दी जा रही जानकारी :
राष्ट्रीय पोषण अभियान के जिला समन्वयक महेंद्र कुमार ने बताया, कोरोनकाल में सेविकाएं गृह भ्रमण के दौरान पोषाहार वितरण करने के साथ पोषण से जुड़ी जानकारी दे रही हैं। सेविकाएं फोटो और वीडियो के माध्यम से गर्भवती महिलाओं व प्रसूति महिलाओं का ज्ञानवर्धन करती हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य कुपोषण को दूर करना है। ताकि, माताओं के साथ साथ शिशुओं को भी पोषित किया जा सके। गर्भवती महिलाओं को बताया जाता है किशिशु जन्म के एक घंटे के भीतर मां का पहला पीला गाढ़ा दूध बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। अगले 6 माह तक केवल मां का दूध बच्चे को कई गंभीर रोगों से सुरक्षित रखता है। 6 माह के बाद बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास काफी तेजी से होता है। वहीं, प्रसूति महिलाओं को ऊपरी आहार की जानकारी दी जाती है।
बच्चों के माता-पिता को भी प्रेरित किया जाता है :
डुमरांव प्रखंड स्थित कोड संख्या 47 की सेविका लीलावती कुमारी ने बताया, पोषण के साथ साथ बच्चों को खेल खेल में पढ़ाई करने की गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है। बच्चों की शाररिक और मानसिक गतिविधियां को कराने के लिए बच्चों के माता-पिता को भी प्रेरित किया जाता है। जिससे बच्चों को घर में बेहतर माहौल मिल सकें। जिससे उनका शरीरिक व मानसिक विकास हो सके। बच्चों को उनके घर पर उनके रुचि अनुसार गतिविधि कराने को प्रेरित करना चाहिए। जिसमें नदी, पहाड़ या तालाब, आम का पेड़, सूर्य ,चंद्रमा आदि की आकृति बनाकर रंग भरना। पेड़ की पत्तियों से आकृति बनाना, अलग अलग जानवरों की आवाजें निकालना, फलों व सब्जियों का चार्ट तैयार कर उनकी पहचान करना। इन सभी गतिविधियों से उनका सर्वांगीण विकास संभव हो सकता है।
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