बक्सर । आधुनिकता के दौर में जहां ढोलक, झाल और गवनई की जगह डीजे ने और पारंपरिक फगुआ गीतों की जगह होली के फूहड़ ओर अश्लील गानों ने ले ली है वहीं ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत रघुनाथपुर में जब तुलसी विचार मंच के युवाओं ने बुजुर्गों के साथ ढोलक, झाल और मंजीरे की थाप पर फगुआ के पारंपरिक गीत शुरू किए तो हर कोई होली के रंग में रंग गया। ग्रामीणों द्वारा टोली में गाए जाने वाले पारंपरिक फगुआ गीत जहां विलुप्त होते जा रहे है वहीं रघुनाथपुर में तुलसी विचार मंच ने फिर से इस परंपरा को जीवंत करने का प्रयास किया है। ढोलक और मंजीरे की मंडली बैठने से पहले फाग टोली ने तुलसी स्थान स्थित ठाकुरबाड़ी एवं महाकालेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना कर एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं दी तत्पश्चात पारंपरिक तरीके से फाग की शुरुआत की गई।
तुलसी स्थान के बाद मंडली फाग गीत गाते हुए जवाहिरी माई, महावीर मंदिर, गोरिया बाबा, विशाल सिंह के यहां से होते हुए भूतपूर्व मुखिया स्व श्रीराम ओझा के यहां पहुंची जहां तुलसी विचार मंच के संयोजक शैलेश ओझा ने फाग मंडली को अबीर गुलाल लगाकर अंगवस्त्र से सम्मानित किया। इस अवसर पर शैलेश ओझा ने कहा कि फगुआ सिर्फ़ त्यौहार नहीं हमारी परंपरा और विरासत भी है। सामाजिक ताने बाने और परंपरा को बनाये रखने के लिए इन्हे फिर से जीवंत करने की जरूरत है क्योंकि असली शुकून, मिठास और आनंद इसी में है। आप बहुत बड़ा कलाकार बनो न बनो अपनी परंपराओं को ढोना आना चाहिए। 99 साल के बुजुर्ग माधव भगत एवं दीनानाथ पाल ने "सुमिरो शिवशंकर तोहरो नाम" से शुरुआत की बाद में स्थानीय रूपशंकर व्यास ने हास्य, व्यंग एवं वीर रस शैली के फगुआ गीत से ग्रामीणों को झूमने पर मजबूर कर दिया। "हनुमत लेके अबीर" और "भोला बावुरईलन" आदि होली के लचकों ने समा बांध दिया। बुजुर्गों के साथ साथ युवाओं ने भी झाल और मंजीरों पर खूब संगत किया। गोबिंदा पाल, दीनदयाल और विशाल सिंह ढोलक पर आधुनिक वाद्य यंत्रों को मात दे रहे थे।
फगुआ गा रहे माधो बाबा ने बताया की यह होली में गाया जाने वाला पारंपरिक गीत है। यह मूलरूप से बिहार में गाया जाने वाला गीत है, जिसे लोग टोली बनाकर ढोलक और मंजीरे पर गाते है। पहले बसंत पंचमी से ही होली की खुमारी चढ़ने लगती थी। फगुआ का पहला ताल उसी दिन ठोकी जाती है।
होली के दिन से ही फागुन का अंत और चैत प्रारंभ हो जाता है। मंडली ने फगुआ गायन के अंत में "ऐही ठईया होई ना सहायिया ऐ रामा" से चैता का भी आगाज किया। मंडली में माधव भगत, दीनानाथ पाल, गोविन्दा पाल, हीरालाल, राम बच्चन पाल, आनंद शर्मा, विशाल सिंह, रूपचंद व्यास, विजय कुमार, सुरेन्द्र पाल अखिलेश पाल आदि लोग थे।
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