बक्सर । कम मजदूरी मिलने के कारण मनरेगा और कृषि कार्य से मजदूरों की संख्या लागातार कम होती जा रही है।श्रम के अनुरुप मजदूरी की चाहत में ग्रामीण इलाकों से महानगरों की ओर मजदूरों का तेजी से पलायन हो रहा है।जिसके कारण कृषि और मनरेगा के क्षेत्र में मजदूरों का संकट बढने लगा है।मजदूरों की कमी से किसान तेजी से मशीन पर निर्भर होने लगे है।
एक्टिव मजदूरों की घट रही संख्या :
मनरेगा और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या लगातार घट रही है।विभागीय आकडों के अनुसार डुमरांव प्रखंड में दस साल पहले कुल जॉबकार्डधारियों की संख्या 50 हजार 797 थी। इसमें एक्टिव मजदूरों की संख्या 32 हजार 300 थी।वर्तमान समय में यह आकडा आधे से भी कम हो गया है। मनरेगा पीओ सुनील कुमार ने बताया कि वर्तमान में जॉबकार्डधारी मजदूरों की कुल संख्या 16 हजार 674 है। इसमें एक्टिव मजदूरों की संख्या 9 हजार 464 रह गया है। पीओ का कहना है कि जॉबकार्ड के आधार से लिंक होने के कारण डबल जॉबकार्ड रद्द हो गए।अभी मजदूरी 228 रुपया प्रतिदिन है। कम मजदूरी को भी बडा कारण माना जा रहा है।
बाजार के अनुरुप नहीं मिल रही मजदूरी :
मनरेगा और कृषि क्षेत्र से जुडे मजदूरों को बाजार के अनुरुप मजदूरी नहीं मिल रही है। बाजार में मजदूरी करने वाले एक मजदूर को प्रतिदिन मजदूरी मद में 350 से 400 रुपये मिल रहे है।कृषि में कटनी करने वाले मजदूरों को बोझा के हिसाब से मजदूरी मद में फसल मिलता है। लाखनडिहरा के रमेश और नोनियाडेरा के दीपू कुमार का कहना है कि मेहनत के बाद भी पेट नहीं भरे,तो ऐसा काम करने से क्या फायदा।यही कारण है कि कृषि और मनरेगा से मजदूरों की दूरी बनती जा रही है।
पलायन से कार्यों पर असरः बेहतर जीवन की चाहत में मजदूरों का तेजी से पलायन हो रहा है। लाखनडिहरा के किसान संतोष कुमार स़िह कहते हैं कि मजदूर परिवार की नयी पीढी जवान होते परदेश का रुख करती है।नोनियडेरा के राजकुमार कहते हैं कि मनरेगा और कृषि में काम करने के बदले मजदूर परदेश में कमाना बेहतर समझते हैं।मजदूर बताते है कि परदेश में श्रम के अनुरूप मजदूरी मिलती है।जिससे उनके परिवार का भरणपोषण हो जाता है। डुमराँव के मनरेगा पीओ सुनील कुमार ने कहा कि जॉबकार्डधारी मजदूरों को सरकार के नियमानुसार मजदूरी का भुगतान दिया जा रहा है। काम भी आवंटित होता है।
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