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कुष्ठ रोगियों की पहचान के बाद छोटका नुआंव में चलाया गया खोजी अभियान- health-body




- रोगियों के परिजनों की जांच करने के साथ साथ दी गई एसडीआर की दवा

(बक्सर):-  स्वस्थ शरीर इंसान की सबसे बड़ी पूंजी है। लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जो हमें शारीरिक रूप से तो हानि पहुंचाती ही हैं, साथ ही मानसिक और सामाजिक रूप से भी आघात पहुंचाती हैं। जिनमें कुष्ठ (लेप्रोसी) भी शामिल है। जिले में कुष्ठ रोग के निवारण के लिए नियमित रूप से अभियान चलाए जा रहे हैं। इस क्रम में बीते दिनों सदर प्रखंड के छोटका नुआंव में कुष्ठ के दो नए मरीज मिले। जिनमें से एक ग्रेड एक और दूसरा ग्रेड शून्य का मरीज है। जिसको गंभीरता से लेते हुए गुरुवार को गांव में खोजी अभियान चलाया गया। जिसमें नए मरीजों के परिजनों और उनके आसपास के परिवार के सदस्यों की जांच की गई। साथ ही, जांच के बाद सभी को सिंगल डोज रिफैम्पिसिन (एसडीआर) की दवा खिलाई गई। ताकि, भविष्य में कुष्ठ की संभावना को जड़ से समाप्त किया जा सके।
छुआछूत की बीमारी नहीं है कुष्ठ : 
सदर प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. सुधीर कुमार ने कहा, लोग कुष्ठ को छुआछूत की बीमारी समझते हैं। लेकिन सच्चाई इससे परे है। कुष्ठ एक ऐसी बीमारी है जो हवा में मौजूद बैक्टीरिया के जरिए फैलती है। हवा में ये बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आते हैं। इसलिए इसे संक्रामक रोग भी कहते हैं। यानी यह संक्रमण या कहिए कि सांस के जरिए फैलती है। लेकिन यह छुआछूत की बीमारी बिल्कुल नहीं है। अगर आप इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाएंगे या उसे छू लेंगे तो आपको यह बीमारी बिल्कुल नहीं होगी। लेकिन अगर उसके खांसने, छींकने से लेप्रै बैक्टीरिया हवा में डिवेलप कर लेता है और आप उस हवा में सांस लेकर नमी के उन कणों को अपने अंदर ले लेते हैं तो संभावनाएं बन सकती हैं कि आप इस बीमारी से संक्रमित हो जाएं।
कुष्ठ रोग के लक्षण :
पारा मेडिकल वर्कर नागेश कुमार दत्त ने बताया, कुष्ठ के कारण मरीज के शरीर पर सफेद चकत्ते यानी निशान पड़ने लगते हैं। ये निशान सुन्न होते हैं यानी इनमें किसी तरह का सेंसेशन नहीं होता है। अगर आप इस जगह पर कोई नुकीली वस्तु चुभोकर देखेंगे तो मरीज दर्द का अहसास नहीं होगा। ये पैच या धब्बे शरीर के किसी एक हिस्से पर होने शुरू हो सकते हैं, जो ठीक से इलाज ना कराने पर पूरे शरीर में भी फैल सकते हैं। सिर्फ चुभन ही नहीं बल्कि लेप्रसी के मरीज को शरीर के विभिन्न अंगों और खासतौर पर हाथ-पैर में ठंडे या गर्म मौसम और वस्तु का अहसास नहीं होता है। प्रभावित अंगों में चोट लगने, जलने या कटने का भी पता नहीं चलता है। जिससे यह बीमारी अधिक भयानक रूप लेने लगती हैं और शरीर को गलाने लगती है।


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