- तंबाकू के प्रति जागरूकता फैलाने में अब स्कूली बच्चों की ली जा रही है मदद
- सप्ताह में एक दिन सरकारी स्कूली के बच्चों को तंबाकू प्रयोग के खिलाफ किया जा रहा है जागरूक
(बक्सर):- समाज को तंबाकू के दुष्प्रभावों से बचाने और लोगों को तंबाकू का सेवन नहीं करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने नई पहल शुरू की है। स्वास्थ्य समिति के गैर संचारी रोग विभाग, होमी भाभा कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर व अल्केम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में अभियान चलाया जा रहा है। जिसके तहत सप्ताह में एक दिन अलग-अलग स्कूलों में स्कूली बच्चों को तंबाकू सेवन न करने और अपने परिजनों को इसका सेवन न करने देने के लिए जागरूक करते हुए उनको शपथ दिलाई जा रही है। इस क्रम में बीते दिन जिला मुख्यालय स्थित इंदिरा हाई स्कूल में स्कूली बच्चों को भी शपथ दिलाई गई। इस दौरान आईसी डॉ. वरुण संकृत और मनोचिकित्सक डॉ. कृति पांडेय ने छात्र-छात्राओं को नशे के दुष्प्रभावों से अवगत कराते हुए उनको विभिन्न जानकारी दी। जिसके बाद छात्र-छात्राओं ने अपने परिवार के लोगों को भी नशे व तंबाकू के प्रति जागरूक करने की बात कही। इस दौरान प्रभारी प्रधानाध्यापक देवेंद्र राय, प्लस टू शिक्षकों में अमरनाथ दूबे, मनीष कुमार पांडेय, अभय कुमार, माध्यमिक शिक्षकों में ममता कुमारी, रंजन कुमार चौधारी, रवि रंजन चौबे के अलावा लाइब्रेरियन राजेश कुमार पाठक, लिपिक आशुतोष कुमार व डाटा इंट्री ऑपरेटर सोनू सिंह मौजूद रहे।
बाल्यावस्था में ही बच्चे नशे की ओर होते हैं आकर्षित :
डॉ. वरुण संकृत ने स्कूली बच्चों को बताया, नशे की ओर बाल्यावस्था से ही आकर्षण बढ़ने लगता है। जो शौक से होते हुए आदत में तब्दील हो जाती है। जिसके बाद आदत लत में बदल जाती है। उसके बाद जब कोई भी नशे को छोड़ने की सोचता है, तब तक काफी देर हो जाती है। नशे के कारण उक्त व्यक्ति का शरीर अंदर से खोखला हो जाता है। चिकित्सीय भाषा में कहा जाए तो लंबे अरसे तक नशे की लत रहने के कारण उसका फेफड़ा, किडनी, गुर्दा खराब हो चुके होते हैं। जिसका समय पर इलाज नहीं कराने पर मौत भी हो सकती है। जिसमें तंबाकू प्रथम श्रेणी में आता है। तंबाकू व उससे निर्मित वस्तुओं का लंबे समय तक सेवन करने के कारण मुंह व फेफड़ों का कैंसर हो जाता है।
परिजनों व आसपास के लोगों को देखकर नशे की ओर झुकाव करता है बच्चा :
मनोचिकित्सक डॉ. कृति पांडेय ने शिक्षकों को बताया, कोई भी बच्चा सबसे पहले अपने परिजनों को देखकर नशे की ओर झुकाव करता है। यदि घर का माहौल ठीक हो, तो वह आसपास के लोगों, दोस्तों व बड़ों की देखादेखी, साथियों के दबाव या फिर स्कूल और घर में पढ़ाई की अत्याधिक दबाव के कारण 11 से 15 साल की उम्र के बीच में नशा करने लगता है। सिगरेट, गुटखा, तंबाकू से होते हुए यह सफर शराब या फिर ड्रग्स तक पहुंच जाता है। जिससे बच्चे की मानसिक संतुलन नशे पर ही आश्रित हो जाता है। जिससे उसका मानसिक और सामाजिक पतन शुरू हो जाता है। ऐसे में बच्चे नशे की लत न पकड़ें , इसके लिए हमें एक बेहतर समाज का निर्माण करना होगा। ताकि, बच्चों को जीवन में सकारात्मक व बेहतर परवरिश दे सकें।
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