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मरीज में टीबी की पुष्टि होने के बाद परिवार के सभी सदस्यों को खिलाई जाती है दवा




- छह साल से कम व अधिक उम्र वर्ग के सदस्यों को वजन के अनुसार दी जाती है दवा की खुराक
- परिजनों में टीबी संक्रमण की भी होती है जांच, पॉजिटिव होने पर उनका भी चलाया जाता है इलाज

बक्सर। सरकार और स्वास्थ्य विभाग टीबी यानि क्षय रोग को पूरी तरह से खत्म करने के लिए लगातार प्रयासरत है। लेकिन, केवल स्वास्थ्य विभाग के भरोसे ही हम टीबी का सफाया नहीं कर सकते। इसके लिए लोगों को जागरूक होते हुए स्वास्थ्य विभाग के साथ खड़ा होना होगा। तभी हम टीबी मुक्त देश का निर्माण कर सकेंगे। हालांकि, सरकार इसके लिए राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चला रही है। जिसके अतर्गत कई कार्य किए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों और अभियानों की बदौलत न केवल टीबी मरीजों बल्कि उनके परिजनों का भी इलाज किया जाता है। ताकि, टीबी के संक्रमण को प्रसारित होने से रोका जा सके। यदि किसी टीबी के लक्षणों वाले मरीज में जांच के बाद टीबी की पुष्टि की जाती है, तो उसके बाद उक्त मरीज के परिवार के सभी सदस्यों में टीबी की जांच की जाती है। जिसके बाद पुष्टि होने पर उनका भी इलाज किया जाता है। लेकिन, सदस्यों में टीबी के संक्रमण की पुष्टि नहीं होती है, तब उनको आइसोनियर जाइम की दवा की खुराक दी  जाती है। जिससे भविष्य में उनमें संक्रमण की संभावना पूरी तरह से खत्म हो जाती है। 
सदस्यों को दवा देने में उम्र व वजन का रखा जाता है ख्याल :
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह सीडीओ डॉ. अनिल भट्‌ट ने बताया कि पूर्व में टीबी संक्रमित मरीजों के परिवार में सिर्फ छह साल से कम उम्र के बच्चों को उनके कमजोर रोग प्रतिराधक क्षमता को देखते हुए ही दवा की खुराक दी जाती थी। लेकिन, अब टीबी की पुष्टि होने के बाद परिवार के सभी सदस्यों की जांच करने के बाद दवा की खुराक दी जाती है। लेकिन, यह खुराक उनके उम्र और वजन के अनुसार दी जाती है। इसलिए टीबी के लक्षणों वाले मरीजों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उनसे जानकारी लेकर पारिवारिक सूची तैयार की जाती है। जिसमें छह वर्ष से अधिक और छह वर्ष से कम लोगों को वर्गीकृत किया जाता है। जिससे उन्हें दवा देने में सहूलियत होती है।
टीबी मरीजों को मास्क का प्रयोग कराना अनिवार्य :
डॉ. भट्‌ट ने बताया, टीबी के मरीजों को रोग की पुष्टि होने के बाद मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करना चाहिए। मास्क के प्रयोग से परिवार के अन्य सदस्यों में संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है। साथ ही, उस समय बेहद जरूरी हो जाता है, जब उनके पास छोटे बच्चे हो। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मास्क का प्रचलन बढ़ गया था। जिसके बाद टीबी मरीजों की संख्या में काफी गिरावट हुई थी। लोगों ने कोरोना के जारी प्राेटाकॉल्स का पालन किया था। जिससे कोरोना के साथ टीबी का भी संक्रमण प्रसार बहुत कम हुआ। उसके बाद जैसे ही स्थिति सामान्य हुई, लोग मास्क का उपयोग करना न के बराबर कर रहे हैं। जिससे टीबी संक्रमण की संभावना बढ़ गई है। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के लोगों को इसका ध्यान रखना होगा। लोगों की थोड़ी सी जागरूकता उन्हें टीबी की चपेट में आने से बचा सकती है।


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