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गर्भावस्था में एनीमिया प्रबंधन से मातृ मृत्यु दर में आयेगी कमी- any women


 


(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़/आरा):- किसी भी महिला के लिए गर्भावस्था से लेकर मां बनने तक का समय काफी महत्वपूर्ण होता। ये वह दौर है जो माताओं के साथ साथ शिशुओं के शारीरिक और मानसिक परिस्थिति की नींव होती है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान रखना होता है। चाहे वह खान पान से हो या फिर दिनचर्या से। माताओं द्वारा बिताये गये हर पल का असर सीधे उनके गर्भस्थ  बच्चे पर पड़ता है। गर्भावस्था में बेहतर शिशु विकास एवं प्रसव के दौरान होने वाली रक्तस्राव  के प्रबंधन के लिए महिलाओं में पर्याप्त मात्रा में खून होना आवश्यक होता है। एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जांच के प्रति महिलाओं की जागरूकता ना सिर्फ एनीमिया रोकथाम में सहायक होती है बल्कि सुरक्षित मातृत्व की आधारशिला भी तैयार करती है। 

7 ग्राम से कम खून होने पर सीवियर एनीमिया होता है:

जिला अपर चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. केएन  सिन्हा ने बताया, गर्भावस्था में एनीमिया प्रबंधन बहुत जरूरी  होता है। एनेमिक महिलाओं को तीन श्रेणी में रखा जाता है। 10 ग्राम से 10.9 ग्राम खून होने पर माइल्ड एनीमिया, 7 ग्राम से 9.9 ग्राम खून होने पर मॉडरेट एनीमिया एवं 7 ग्राम से कम खून होने पर सीवियर एनीमिया होता है। एनेमिक महिलाओं की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार जिले में 15 से 49 वर्ष के मध्य आयु की 68.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। गर्भावस्था में 4 प्रसव पूर्व जांच नहीं कराना एनीमिया का प्रमुख कारण है। आंकड़ों के अनुसार जिले में कुल 33.5 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही 4 प्रसव पूर्व जांच कराती हैं। इसमें सुधार के लिए  स्वास्थ्य विभाग प्रयासरत है।

खून की कमी होने से शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है प्रतिकूल असर : 

गर्भावस्था में महिलाओं को सामान्य से अधिक खून की जरूरत होती है। गर्भस्थ  शिशु के लिए माता का स्वस्थ होना जरूरी होता है क्योंकि माता के ही माध्यम से शिशु को पोषण प्राप्त होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था के दौरान महिला के एनेमिक होने से शिशु के वजन में कमी, एनेमिक नवजात का जन्म, जन्म के साथ शिशु जटिलता में बढ़ोतरी एवं उम्र के साथ शिशुओं में सही मानसिक एवं शारीरिक विकास में कमी आती है। एनीमिया के कारण शिशुओं के साथ माताओं में भी ह्रदय घात, संक्रमण की संभावना, समय से पहले प्रसव, प्रसवोत्तर अत्याधिक रक्त स्राव के साथ स्तनपान कराने में अक्षमता जैसी जटिलतायें शामिल हैं |      
जागरूकता से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी संभव:  
डॉ. सिन्हा ने बताया, ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस एवं प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान पर प्रसव पूर्व जांच के माध्यम से एनेमिक गर्भवती महिलाओं की जांच की जा रही है एवं साथ ही सामुदायिक स्तर पर गर्भवती महिलाओं को बेहतर खान-पान के बारे में भी जानकारी दी जा रही है। महिलाओं के बीच एनीमिया के विषय में संपूर्ण जानकारी से प्रसव के दौरान होने वाली मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लायी जा सकती है। यदि गर्भवती महिला में खून की मात्रा 7 ग्राम से कम होती है तब महिला गंभीर एनेमिक की श्रेणी में शामिल हो जाती है। इस स्थिति में सुरक्षित प्रसव के लिए प्रथम रेफरल यूनिट में ही प्रसव कराना चाहिए। जटिल प्रसव के कुशल प्रबंधन के लिए खून चढ़ाने की भी जरूरत हो सकती है एवं इसके लिए प्रथम रेफेरल यूनिट में ब्लड ट्रान्सफ्यूज़न की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।


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