बक्सर । डुमरांव का महरौरा महादलितों का एक ऐसा गांव है, जहां के गरीबों को आजादी के 75 साल बाद भी प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ पाने की आस पूरी नहीं हुई है।शहर व प्रखंड के करीब होने के बाद भी यह गांव नगर परिषद या पंचायत में शामिल नहीं हो पाया था। आज भी यहां की लगभग साठ प्रतिशत आबादी कच्चे मकानों में गुजर बसर कर रही है।यहां के गरीब यह नहीं समझ पा रहे है कि आखिर सरकार व प्रशासन में बैठे लोग उनकी उपेक्षा क्यों कर रहे है।
गांव में मजदूरों की है आबादी :
डुमरांव प्रखंड से महज तीन सौ गज पर महरौरा गांव है। यहां सिर्फ महादलितों और पिछड़ों की आबादी निवास करती है। लगभग डेढ़ सौ घर महादलित के है। यहां के लोग मेहनतकशों की संख्या 98 प्रतिशत है। पूरे दिन मेहनत मजदूरी करते है, तो इनके घरों में चूल्हा जलता है। यहां के लोगों का कहना है कि किसी तरह पेट भर रहा है।पक्का मकान की कल्पना करना उनके बूते से बाहर की बात है। उपेक्षा की हद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 तक यह गांव नगर और पंचायत में शामिल नहीं था। जिसके कारण यहां के गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
पहली बार पंचायत के लिए किया वोटः
महरौरा गांव वर्ष 2011 में कुशलपुर पंचायत में शामिल हुआ। इस वर्ष पहलीबार यहां के गरीबों ने पंचायत के मतदान में हिस्सा लिया। पंचायत के लिए वोट करने के बाद यहां के गरीबों को इस बात की उम्मीद जगी कि अब उन्हें भी आवास योजना का लाभ मिल जाएगा। लेकिन छह साल के इंतजार के बाद भी इनके अरमान पूरे नहीं हुए। वर्ष 2022 में नगर परिषद के नये परिसीमन में महरौरा नगर परिषद का वार्ड संख्या 16 का हिस्सा बन गया। गांव के महेन्द्र राम बताते है कि यहां के साठ प्रतिशत से अधिक गरीबों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है। आवास योजना के लाभ के लिए कई बार अधिकारियों को आवेदन दिया गया। लेकिन यहां के एक भी गरीब को आजादी के 75 साल बाद भी आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है।अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि आवास की नई सूची में महरौरा के गरीबों को योजना का लाभ दिया जाएगा।
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