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गंगा यज्ञ के दूसरे दिन गंगापुत्र के मुखारविंद से प्रवचन सुन भाव विभोर हुए श्रोता



(बक्सर ऑनलाइन न्यूज):-  सदर प्रखंड के कम्हरिया गाँव के समीप गंगा धाम जीयर मठ के मठाधीश जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के सानिध्य में आयोजित 5 दिवसीय गंगा यज्ञ में दूर दूर से श्रद्धालु पहुँचे हुए है। वही गंगा यज्ञ के दूसरे दिन श्री गंगापुत्र जी महाराज के मुखारबिंद से प्रवचन सुनकर श्रोता भाव विभोर हुए। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि जिस राजा के राज्य में गाय दुखी हो,संत दुखी हो,ब्राम्हण दुखी हो, उस राजा की कीर्ति,आयु,तेज,नष्ट हो जाता है। तस्य मतस्य नश्यंती कीर्तिरायुर्रभगो गति। जब प्रीक्षित ने धर्म रूपी बैल को देखा तुम्हारे तीन चरण किसने काटे,क्योंकि धर्म के 39 लक्षण है, उनमें से चार बचे सत्य, तप, दया,दान, कलयुग में सिर्फ एक बचा दान, दान से ही जीव का कल्याण होगा,राजा के राज्य में ब्राम्हण धर्म का आचरण नही करता हो तो पहले उसे समझावे , न माने तो उसका धन छीन कर तपस्वी ब्राम्हण को बाट दे,फिर भी धर्म आचरण न करे तो उसे बेगारी में लगा दे, तब उसे लगेगा की संध्या पूजा करे तो राजा भी सरण में आयेगा।


श्री गंगापुत्र जी महाराज ने कहा कि युग निर्माता ब्राम्हण है, ब्राम्हण जब तप में योग में पूर्ण प्रतिष्ठित होता है तो सतयुग आ जाता है।ब्राम्हण जब कर्मकाण्ड में यज्ञादिक में प्रतिष्ठित होता है तो त्रेता आ जाता है। ब्राम्हण जब तांत्रिक वैदिक पद्धति से पूजा में लग जाता है तो द्वापर आ जाता है और ब्राम्हण जब त्याग,तपस्या,योग ध्यान ,समाधि , यज्ञ,पूजा पाठ को तिलांजलि दे देता है तो कलयुग आ जाता है। राजा के बातो को धर्म ने सुना तो उसने कहा आपने जो कहा वो आपके खानदान के अनुरूप है।धर्म ने कहा भगवत अतिरिक्त दृष्टि यही दुख का कारण है।ज्ञानी लोग ऐसा मानते है।योगी लोग अपने आत्मा को दुख का कारण मानते है। दैवम अन्ये। ज्योत्सी लोग दैव को दुख का कारण मानते है। पूर्व मिमांसक दुख का कारण कर्म को मानते है। कोई न काऊ सुख दुख करी दाता, निज कृत कर्म भोग सुनी भ्राता। भक्त भगवान की इक्षा को ही दुख का कारण मानता है। कलयुग को मारा नही परीक्षित ने क्यों कलयुग में दुर्गुण बहुत है लेकिन गुड भी है।कलि कर एक पुनीत प्रतापा, मानस पुण्य होही नही पापा।




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