(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- सिमरी के खैरापट्टी में आयोजित श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ की पूर्णाहुति कल सोमवार को हवन पूजन से होगी। इसके बाद भव्य भंडारा व भजन संध्या कार्यक्रम के आयोजन के साथ समापन होगा। वही श्री श्री 1008 श्री गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के मुखारबिंद से कथा श्रवन करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ प्रतिदिन महायज्ञ ने उमड़ रही है।
रविवार को श्री गंगापुत्र जी महाराज ने शिव महापुराण की कथा सुनाई। जिसमे उन्होंने बताया कि शिव महापुराण के अनुसार भगवान अक्षयनौमी को भगवान नारायण करवट बदलते है,देव उठनी एकादशी को भगवान जगते है। चार महीने जब तक भगवान सोते है तब तक संकर भगवान सारे ब्रम्हांड की व्यवस्था को संभालते है।और बैकुंठ चतुर्दशी को गंगा स्नान का बहुत महत्व है शिव महापुराण के अनुसार ।एक बार भगवान शिव माता पार्वती विंध्याचल पर्वत पर विचरण कर रहे थे तभी माता एक शिले पर बैठ गई भगवान शिव बोले चले, देवी बोली नहीं थोड़ा विश्राम कर ले तब तक एक छोटी सी इली किट ने माता पार्वती से आग्रह किया की हमे मुक्ति प्रदान करे। माता ने कहा कैसे कीट बनी तो उसने कहा मैं पूर्व जन्म में हलुआई की पत्नी जो भी मिठाई बनता उसको अंगुली से चाट लेती जिसके दोष से चावल की कीट बनी । माता पार्वती ने कहा क्या तू कभी भगवान की पूजा, व्रत,उपवास नहीं की कहा कि तभी तो आप हमारी आवाज सुन पा रही है। तेरा पति घून कैसे बना कहा जो भी मिठाई बनता उसमे से बिना भोग लगाए निकल के खा लेते जिसके दोष से घून बनना पड़ा। तब पार्वती ने कहा देखो कार्तिक की बैकुंठ चतुर्दसी को अगर गंगा स्नान कर लोगी पति पत्नी तो तुम्हारा उद्धार हो जाएगा।इली ने घून से कहा चलो नहाने लेकिन वो चावल खाने में रह गया।इली स्नान कर ली जिसके कारण अगले जन्म में राजा की पुत्री बन के आई और घून, गदहा बना। इली का राज कुमार से विवाह हुआ और जब ससुराल जाने लगी तो पिता जी से गदहे को भी साथ भेजने के लिए कही राजा ने गदहे को भी समान ढोने के लिए भेजा ।फिर एक दिन ससुराल में गदहे से इली,राजकुमारी बोली कल बैकुंठ चतुर्दसी है गंगा नहा लो तुम्हारा भी उद्धार हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि गदहा तो गदहा ही होता है फिर नही तैयार हुआ,राजकुमार ने अपनी पत्नी को गदहे से बात करते देखा कहा देवी आप गधे से बात करती है।तब उसने पूर्व जन्म के बारे में बताई और राजकुमार ने सारे राज्य के लोगो को कहा गंगा स्नान करके वस्त्रों को बिना निचोड़ इस गदहा पर अपने गीले वस्त्र ला कर निचोड़ ,सबने वस्त्र के गंगा जल को निचोड़ा गदहे के ऊपर और गदहा का शरीर छूटा और दिव्य लोक को चला गया। वही श्री गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महाराज ने कहा कि बैकुंठ चतुर्दशी को जो भी गंगा स्नान करता है शरीर छोड़ने के बाद उसे शिव लोक एवम बैकुंठ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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