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श्रीमद्भागवत कथा में उमड़ा श्रद्धा का सागर, संयम को बताया धर्म का सार



बक्सर। सतीघाट स्थित लालबाबा आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत सप्ताह कथा का चौथा दिन श्रद्धा, भक्ति और संयम का संदेश लेकर आया। कथा की अध्यक्षता ब्रह्मपुरपीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र (पूर्व कुलपति) ने की। कथा सुनने बक्सर और बलिया सहित आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।


आचार्य धर्मेन्द्र ने अपने प्रवचन में कहा कि संयममय जीवन ही उत्तम साधना है और यही सनातन धर्म का सार है। उन्होंने गजेन्द्र मोक्ष और अजामिल मोक्ष की कथाओं के माध्यम से नारायण नाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि नारायण की कृपा के लिए केवल श्रद्धा की आवश्यकता है।


प्रह्लाद चरित्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उत्तम संतान केवल उत्तम कुल में ही नहीं होती, बल्कि संस्कार किसी भी कुल में जन्म लेने वाले को महान बना सकते हैं। उन्होंने हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद के प्रसंग को इस सिद्धांत का प्रमाण बताया।



कथा के दौरान अम्बरीष, सगर चरित्र, समुद्र मंथन, कुम्भ महात्म्य तथा गंगा अवतरण की कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया। आचार्य जी ने गंगा को पापियों का उद्धार करने वाली बताया और गंगा प्रदूषण से मुक्ति पर बल दिया।

श्रीमद्भागवत का मूल पाठ पं. अशोक द्विवेदी द्वारा किया गया। व्यवस्थाओं में महंत सुरेन्द्र बाबा और यज्ञ समिति के सदस्य तत्पर रहे। भंडारे और प्रसाद वितरण की उत्तम व्यवस्था रही। श्रद्धालुओं ने इस दिव्य आयोजन को अविस्मरणीय बताया।





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