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दक्षिण भारत से हजारों श्रद्धालुओं का जत्था पहुँचा वामनेश्वर मंदिर,धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व बढ़ने से बक्सर हुआ गर्वान्वित- wednesday-india



(बक्सर ऑनलाइन न्यूज):-  बुधवार को दक्षिण भारत से लगभग 2300 की संख्या में बक्सर पहुँचे श्रद्धलुओं का जत्था जिले के सोमेश्वर स्थान स्थित मंडल कारा परिसर में वामनेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना की। जिसके चलते दिनभर भक्तिमय वातावरण का माहौल बना रहा। आपको बता दें कि भले ही मिनी काशी कहा जानेवाला बक्सर सरकारी अपेक्षाओं का शिकार बना रहा लेकिन , परदेशी श्रद्धालुओं के आगमन से यह साबित होता है कि बक्सर की आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व कितनी अधिक है। 

इस दौरान श्रद्धलुओं के साथ आये कथावाचक वेलुककूड़ी कृष्णन स्वमी जी महाराज ने यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वे सभी श्रीराम भक्त है और इस यात्रा का नाम श्री रामअनु यात्रा है उन्होंने बताया कि इसमें शामिल सभी श्रद्धालु दक्षिण भारत के तमिलनाडु एवं कर्नाटका से है। उन्होंने बताया कि   वे सब चार बार इस तीर्थयात्रा को करते है। पहला यात्रा वर्ष 2006 में किये थे दूसरा 2010 में तीसरा वर्ष 2014 में करने के बाद ये चौथा यात्रा है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम के जहाँ जहाँ पावन पग पड़े है उस तीर्थस्थल का दर्शन कर वे लोग अपने को धन्य मानते है। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व वे लोग कानपुर स्थित बिठूर व अयोध्या में दर्शन पूजन करने के उपरांत बक्सर के वामनेश्वर,कामनेश्वर,सिद्धाश्रम धाम पहुँचे हुए है। वही उन्होंने बक्सर की धरती को पवित्र स्थान बताते हुए कहा कि यहाँ के स्थानीय लोग सौभाग्यशाली है जो यहाँ के निवासी है।

बताते चलें कि बटुक वामन के रूप में भगवान विष्णु का पांचवां अवतार बक्सर में हुआ था। जिसे दसावतारों में पहला शरीररधारी स्वरूप माना जाता है। दैत्यराज बलि के आतंक को खत्म करने के लिए श्री नारायण ने चरित्रवन स्थित आश्रम में ब्राह्मण दंपति के कोख से जन्म लिए। इसके बाद इस जगह का नाम वामनाश्रम पड़ गया। कद-काठी में ठिगना होने के चलते ब्राह्मण बालक का नाम वामन पड़ा। जिन्होंने अपने बुद्धि कौशल के बूते असुरराज बलि को साम्राज्य विहीन कर देवराज इंद्र के गद्दी खो की आशंका को निर्मूल कर दिया। बक्सर सेंट्रल जेल परिसर में भगवान वामन द्वारा स्थापित आज भी शिवलिंग विद्यमान है। जिसे वामनेश्वर शिव के नाम से श्रद्धालु जानते हैं। जहां पूजा अर्चना को भाद्रपद शुक्लपक्ष द्वादशी तिथि (वामन जयंती) को यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं। उस मंदिर में बटुक वामन की मूर्ति भी स्थापित है। 

वैदिक धर्म शास्त्रों में अपनी अध्यात्मिकता के लिए बक्सर की पावन धरती यूं ही विख्यात नहीं है। यहां करोड़ों ऋषियों ने तपस्या कर सिद्धि पाई तो तपबल के बदौलत महर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि बन नये सृष्टि की रचना कर डाली। वामन के रूप में अवतरित हो भगवान विष्णु ने आसुरी शक्तियों का सर्वनाश कर दिया। जिसे बक्सर की पौराणिक इतिहास की एक कड़ी के रूप में जाना जाता है।

आज से तकरीबन 35 लाख वर्ष पूर्व दैत्यराज हिरण्यकशिपु के कुल में जन्में बलि ने देवताओं को पराजित कर तीनों लोकों पर आधिपत्य जमा लिया था। जिसके बाद दैत्यों का अत्याचार बढऩे लगा। नतीजा यह हुआ कि तीनों लोकों में असत्य व दुराचार का बोलबाला बढ़ गया। ऋषि, ब्राह्मण, गौ व महिलाओं पर जुल्म बढ़ गया था। देवताओं में हाहाकार मच गया। तत्पश्चात भक्तों के शोक को हरने के लिये ब्रह्मा जी के निवेदन पर श्री विष्णु ने वामन के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेकर धर्म की स्थापना किया।

श्री वामन पुराण के अलावा श्रीमद्भागवत महापुराण, भविष्यत पुराण व बाल्मिकी रामायण आदि ग्रंथों में मिले शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण दंपति कश्यप व अदिति के पुत्र रूप में बटुक वामन का अवतार हुआ। इसके बाद उनके पास सभी देवता पधारे और उनका उपनयन संस्कार कराए।



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