- 37वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े का हुआ समापन, छात्र-छात्राओं को दी गई जानकारी
- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा या मोतियांबिंद से पीड़ित मरीज भी दान कर सकते हैं अपनी आंखें
बक्सर | जिले में स्वास्थ्य समिति द्वारा संचालित 37वां राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा का समापन गुरुवार को किया गया। जिसके तहत 25 अगस्त से लेकर आठ सितंबर तक स्कूलों व विभिन्न कोचिंग संस्थानों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को नेत्रदान के संबंध में जागरूक किया गया। इस क्रम में बीते दिन जिला मुख्यालय स्थित जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान व बालिका उच्च विद्यालय में कैंपेन चलाकर छात्राओं को जानकारी दी गई। जिसमें उन्हें बताया गया कि कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, लिंग, रक्त समूह और धर्म का हों, वह नेत्रदाता हो सकता है। कम दृष्टि या दूर की दृष्टि के लिए लेंस या चश्मे का उपयोग करने वाले व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। साथ ही, जिन व्यक्तियों की आंखों की सर्जरी हुई हों, वो भी नेत्रदान कर सकते हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा या मोतियांबिंद से पीड़ित मरीज भी अपनी आंखें दान कर सकता है। कमजोर दृष्टि नेत्रदान के रास्ते में बाधा नहीं है। लेकिन, संचारित रोगों से पीड़ित व्यक्ति अपनी आंखें दान नहीं कर सकते हैं। एड्स, हेपेटाइटिस बी/सी, रेबीज, टेटनस और मलेरिया जैसी प्रणालीगत संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते हैं। संगोष्ठी में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवम कुमार व संतोष कुमार के अलावा रेड क्रॉस सोसाइटी के डॉ. आशुतोष कुमार व जिला यक्ष्मा केंद्र के मनीष कुमार शामिल रहें।
नेत्रदान को लेकर भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत :
डॉ. शिवम कुमार ने कहा, कुछ लोग चाहते हुए भी नेत्रदान नहीं कर पाते। इसकी बड़ी वजह है जानकारी का अभाव। नेत्रदान के बारे में जागरूकता बढ़ाकर नेत्रदान की परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है। हादसों में अपने प्रियजनों को गंवाने वाले भी धैर्य धारण कर अपने प्रियजन के नेत्रदान की दिशा में पहल करते हुए इस मुहिम को गति देने में आगे आ सकते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्रदान के इच्छुक लोग परिजनों की लिखित सहमति से दो गवाहों की उपस्थिति में नेत्रदान कर सकते हैं। इसके लिए उनको शपथ फॉर्म भरना होता है। जिसके उपरांत उक्त फार्म नज़दीकी नेत्रबैंक को भेजना होगा। एक बार नेत्रदाता के तौर पर पंजीकृत होने के बाद आपको नेत्रदाता कार्ड उपलब्ध कराया जाएगा। नेत्रदान से कम से कम दो व्यक्ति लाभान्वित हो सकते है। दानकर्ता की दोनों आंखें दो अलग-अलग कॉर्निया से नेत्रहीन व्यक्तियों को लगाई जाती हैं।
नेत्रदान के मूल मकसद को समझना जरूरी :
'नेत्रदान सबसे बड़ा दान है। जिसको जनजन तक पहुंचाने के लिए हम हर वर्ष नेत्रदान पखवाड़ा मनाते है। लेकिन, लोगों को इसके मूल मकसद को समझना होगा। तभी इस अभियान को सफल बनाया जा सकेगा। भगवान ने हम सबको दो अनमोल आंखें दी हैं। ये अनमोल आंखें हमारी मृत्यु के बाद शव के साथ या तो आग में जलकर राख या मिट्टी में दफन हो जाती है। अगर हम चाहे, तो हम ये अनमोल आंखें अपनी मृत्यु के बाद किसी और को देकर उसके जीवन में रौशनी भर सकते हैं। जिससे वो भी दुनिया देखा सकेंगे। इसलिए अपने परिवार को रिश्तेदारों को मित्रों को समाज को नेत्रदान के बारे में बताइए, समझाइए, जागरूक करिए। तभी नेत्रदान पखवाड़ा मनाने का सही उद्देश्य सफल होगा।' - डॉ. जितेंद्र नाथ, सिविल सर्जन, बक्सर
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