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बच्चों के हृदय में छेद समेत कई गंभीर बीमारियों का इलाज है संभव- children-birth




• आरबीएसके के माध्यम से 42 बीमारियों का होता है नि:शुल्क इलाज
• बच्चों में जन्म के समय से हुई बीमारी या विकृति का पता लगाकर किया जाता है इलाज

(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- जिले में कई ऐसे गरीब व जरूरतमंद परिवार हैं, जो माली हालत ठीक नहीं होनेंके कारण बच्चों की गंभीर बीमारियों का इलाज नहीं करा पाते हैं। जिसके कारण बच्चों को जीवन भर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे ही परिवार के बच्चों को देखते हुए सरकार ने विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएं संचालित हैं। जिनमें से एक है राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके)। जिसके माध्यम से गरीब परिवार के बच्चों का इलाज संभव है। आरबीएसके के तहत बच्चे के जन्म से लेकर 18 साल तक के बच्चों में अगर किसी भी प्रकार की बीमारी हो तो सरकार उसका पूरा उपचार कराया जाता है। खासकर 18 साल से कम उम्र के बच्चे के लिए यह कार्यक्रम शुरू किया गया है। जिसके तहत मुख्य रूप बच्चों में जन्म के समय से हुई बीमारी या विकृति का पता लगाकर उसका पूरा इलाज किया जाता है।

आयुष चिकित्सक बच्चों की स्क्रीनिंग करते हैं :

आरबीएसके के जिला समन्वयक डॉ. विकास कुमार ने बताया, स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यक्रम की सफलता के लिए गठित मोबाइल मेडिकल टीम जिले के हर आंगनबाड़ी केंद्र व स्कूलों में पहुंचती है। तब टीम में शामिल आयुष चिकित्सक बच्चों की स्क्रीनिंग करते हैं। ऐसे में जब सर्दी-खांसी व बुखार जैसी सामान्य बीमारी होगी, तब तुरंत बच्चों को दवा दी दिया जाती है। लेकिन बीमारी गंभीर होने की स्थिति में उसे आवश्यक जांच एवं समुचित इलाज के लिए संबंधित पीएचसी में भेजा जाता है। वहीं, टीम में शामिल एएनएम के द्वारा बच्चों का वजन, उनकी ऊंचाई (हाइट), सिर की परिधि, बांह की मोटाई की नापतौल की जाती है। फार्मासिस्ट रजिस्टर में स्क्रीनिंग किये गये बच्चों से संबंधित बातों को ऑन द स्पॉट क्रमवार अंकित किया जाता है।

आंगनबाड़ी केंद्रों पर साल में दो बार होती है स्क्रीनिंग :

आरबीएसके कार्यक्रम में शून्य से 18 वर्ष तक के सभी बच्चों की बीमारियों का समुचित इलाज किया जाता है। 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों की स्क्रीनिंग आंगनबाड़ी केंद्रों में होती है जबकि 6 से 18 साल तक के बच्चों की स्क्रीनिंग उनके स्कूलों में जाकर की जाती। ताकि चिह्नित बीमारियों के समुचित इलाज में देरी न हो। आंगनबाड़ी केंद्रों पर साल में दो बार यानि हर छह महीने पर और स्कूलों में साल में सिर्फ एक बार बच्चों के इलाज के लिए स्क्रीनिंग की जाती है। स्क्रीनिंग करते वक्त बच्चों को हेल्थ कार्ड भी उपलब्ध कराया जाता है।

बच्चों में चार डी पर फोकस किया जाता है :

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष तक के सभी बच्चों में चार डी पर फोकस किया जाता है। जिनमें में डिफेक्ट एट बर्थ, डिफिशिएंसी, डिसीज, डेवलपमेंट डिलेज इन्क्लूडिंग डिसएबिलिटी यानि किसी भी प्रकार का विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता है। आरबीएसके के तहत पहले 39 प्रकार की बीमारियां शामिल थीं। लेकिन अब तीन और बीमारियों को जोड़ दिया गया है। इनमें ट्यूबरक्लोसिस, लेप्रोसी और बौनापन शामिल है। इस प्रकार अब बच्चों की 42 प्रकार की बीमारियों का इलाज किया जाता है।

कार्यक्रम का लाभ उठाएं अभिभावक :

बच्‍चों में कुछ प्रकार के रोग समूह बेहद आम है जैसे दांत, हृदय संबंधी अथवा श्‍वसन संबंधी रोग। यदि इनकी शुरूआती पहचान कर ली जायें तो उपचार संभव है। इन परेशानियों की शुरूआती जांच और उपचार से रोग को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। आरबीएसके के मध्यम से अस्‍पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आती और बच्‍चों में सुधार होता है।  अभिभावक अपने नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य संस्थान में संपर्क कर इस कार्यक्रम का लाभ जरूरी उठाएं। - डॉ. अनिल भट्ट, अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, बक्सर

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