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पारिवारिक जीन नहीं पोषण की कमी है बच्चों में नाटापन की वजह- अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी- district-health


 


जिला स्वास्थ्य समीति, एलाइव एंड थ्राइव एवं विम्स पावापुरी के तत्वावधान में प्रशिक्षण कार्यशाला का हुआ शुभारंभ
सटीक प्रसव पूर्व जांच से गर्भवती महिला के एनीमिया प्रबंधन में मिलेगी मदद- जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी    

(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़/बिहारशरीफ):- मातृ पोषण की महत्ता एवं नवजात पोषण पर स्वास्थ्यकर्मियों का दो दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का शुभारंभ जिला सदर अस्पताल स्थित सभागार में हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. विजय कुमार सिंह एवं जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. रविंद्र चौधरी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. जिला स्वास्थ्य समीति, नालंदा, एलाइव एंड थ्राइव एवं विम्स, पावापुरी के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला के माध्यम से मातृत्व के प्रथम 1000 दिनों में मातृ पोषण,जन्म के तुरंत बाद स्तनपान,6 माह तक सिर्फ स्तनपान, 6 माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार के साथ मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए जरुरी प्रोटोकॉल के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी.
पारिवारिक जीन नहीं पोषण की कमी है बच्चों में नाटापन की वजह- अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी: 
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. विजय कुमार सिंह ने कहा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाना विभाग की सबसे अहम् जिम्मेदारी है. कुपोषण की वजह से बच्चों में नाटापन और दुबलापन की समस्या होती है. सभी को इस भ्रम से बाहर आने की जरुरत है की नाटापन और दुबलापन अनुवांशिक या पारिवारिक जीन की वजह से होता है. गर्भावस्था में मातृ पोषण की कमी इसका प्रमुख कारक है. मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए एनीमिया का प्रबंधन सबसे जरुरी है. 
सटीक प्रसव पूर्व जांच से गर्भवती महिला के एनीमिया प्रबंधन में मिलेगी मदद- जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी:
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेंद्र चौधरी ने अपने संबोधन में बताया गर्भवती महिलाओं में एनीमिया को चिन्हित करना एवं उसका प्रबंधन सटीक रूप से किये गये प्रसव पूर्व जांच से संभव है. एमसीपी कार्ड को अगर सही तरीके से ससमय भरा जाए तो उससे शिशु के पोषण स्तर एवं उसके विकास की जानकारी प्राप्त हो सकती है.
गर्भधारण के समय महिला का सही वजन होना जरुरी- डॉ. रीता झा 
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए वर्धमान इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, पावापुरी की स्त्री एवं प्रसूति विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीता झा ने बताया कुपोषण के चक्र को तोड़ने मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए में मातृ पोषण की भूमिका सबसे अहम् है. जो महिला गर्भधारण के समय 45 किलो या इससे कम वजन की होती है तो यह तय है की ऐसी महिला का नवजात शिशु अल्प वजन का होगा. शिशु के मष्तिष्क का 70 फीसदी विकास गर्भकाल में ही हो जाता है इसलिए अगर माता कुपोषित होगी तो उसकी संतान भी अल्पवजनी एवं मानसिक रूप से कमजोर रहेगी. गर्भवती माता का पोषण स्वस्थ एवं पोषित समाज की नीव तैयार करता है.          
 कुपोषण से शिशु का प्रभावित होता है जीवनकाल: 
प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान एलाइव एंड थ्राइव की स्टेट लीड डॉ. अनुपम श्रीवास्तव ने बताया, कुपोषण दूर करने के लिए छह माह की उम्र से शिशुओं के लिए उपरी आहार बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. नियमित स्तनपान के साथ उपरी आहार शिशु के शारीरिक तथा मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है. बच्चों के कुपोषण का एक प्रमुख कारण पर्याप्त मात्रा में उपरी आहार का नहीं मिल पाना भी है. इससे कुपोषण जन्म लेता है और कुपोषण के कारण कई बीमारियां जन्म लेती हैं जो शिशु के पूरे जीवनकाल को प्रभावित करती हैं.


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