(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- जनसंख्या वृद्धि के साथ सरकार शिशु व माता मृत्युदर में भी कमी लाने की दिशा में काम कर रही है। इसी कड़ी में 11 जुलाई को जिले में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाएगा। जिसे लेकर सभी प्रखंडों में लोगों को परिवार नियोजन के संबंध में जागरूक किया जा रहा है। लेकिन, इन सब के बीच परिवार नियोजन के उद्देश्यों को हासिल करने में किशोरियों की कम उम्र में शादी यानी बाल विवाह भी एक प्रमुख कारण है। जिसे लोगों को समझना होगा। 18 साल से कम उम्र में किशोरियों की शादी होने से उनके सेहत के साथ होने वाले बच्चे की सेहत पर भी प्रतिकूल असर डालता है। साथ ही, गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान कई स्वास्थ्य जटिलताएं बढ़ने का ख़तरा होता है। इससे मां के साथ नवजात के जान जाने का भी खतरा होता है। जिससे सही समय पर परिवार नियोजन साधन अपनाने में भी कमी आती है।
वर्ष 2050 पहुंच सकती है संख्या 120 करोड़ के पास :
द ग्लोबल पार्टनरशिप टू इंड चाइल्ड मैरिज की रिपोर्ट के अनुसार यदि बाल विवाह पर अंकुश नहीं लगाया तब वर्ष 2050 तक यह संख्या 120 करोड़ के पार पहुंच सकती है। फ़िलहाल प्रतिवर्ष 18 साल से कम उम्र में लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है। यही कारण है कि जिन देशों में बाल विवाह की दर अधिक है, उन देशों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को लेकर अधिक चुनौतियां भी है।
21 लाख शिशुओं की बचाई जा सकती है जान:
द ग्लोबल पार्टनरशिप टू इंड चाइल्ड मैरिज की ही रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह पर अंकुश लगाने से आगामी 15 सालों में लगभग 21 लाख शिशुओं को मरने से बचाया जा सकता है। साथ ही, इससे 36 लाख बच्चों को नाटापन के शिकार होने से भी बचाया जा सकता है। 20 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की शादी होने से मृत नवजात जन्म की संभावना 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए 15 से 18 वर्ष तक आयु वर्ग की किशोरियों में गर्भधारण एवं प्रसव संबंधित जटिलताओं के कारण सर्वाधिक मौतें भी होती हैं।
किशोरियों में जन्म नलिका में छिद्र होने की बढ़ जाती है संभावना :
जिला स्वास्थ्य उत्प्रेरक सन्तोष कुमार राय ने बताया, कम उम्र में शादी होने से प्रसव के बाद भी कई जटिलताएं आती हैं। जिसमें ओबेसट्रेटीक फिस्टुला (जन्म नलिका में छिद्र होना) एक गंभीर समस्या है। ओबेसट्रेटीक फिस्टुला के कुल मामलों में लगभग 65 प्रतिशत मामले 18 वर्ष से कम उम्र में मां बनने वाली किशोरियों में होती है। उन्होंने बताया, बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठा रही है। कम उम्र में शादी होने से कम उम्र में ही बच्चे भी हो जाते है। जिससे माता में एनीमिया की समस्या बढ़ने की अधिक संभावना होती है। इससे प्रसव के दौरान कई स्वास्थ्य जटिलताएं आती है, जिससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है।
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