बक्सर । नगर के आईटीआई मैदान में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी ने बताया कि आज हमारे समाज को शास्त्र और शस्त्र, दोनों का ज्ञान होना अत्यावश्यक हो गया है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज के समय में हमारे बच्चों को न तो शास्त्रों का गहन ज्ञान है, और न ही शस्त्रों की शिक्षा।
हमारे बच्चों को शास्त्रों के माध्यम से धर्म, नीति, संस्कृति और आदर्शों की शिक्षा मिलनी चाहिए, वहीं शस्त्रों के माध्यम से आत्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा का बोध भी होना चाहिए। यह संतुलन ही एक संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
पूज्य महाराज श्री के पावन सान्निध्य में चल रही दिव्य कथा के सप्तम दिवस पर, कथा समापन के पश्चात एक विशाल और भव्य सनातन यात्रा का आयोजन किया जाएगा। यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन न होकर एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रहित में संकल्पित आंदोलन का स्वरूप होगी।। यह यात्रा सनातन बोर्ड के गठन, कृष्ण जन्मभूमि के पुनर्निर्माण, और विश्व पटल पर सनातन धर्म का ध्वज फहराने के संकल्प के साथ निकाली जाएगी।
आज लोग गाय को "माता" कहकर जब तक उससे लाभ मिलता है, तब तक रखते हैं, लेकिन जैसे ही वह दूध देना बंद कर देती है, उसे कसाई के हवाले कर देते हैं। यह आचरण मानवता के मूल मूल्यों के विरुद्ध है। अगर गाय सचमुच हमारी माता है — जैसा कि हमारे धर्म और संस्कृति में कहा गया है — तो उसका सम्मान, सेवा और पालन जीवन भर होना चाहिए, न कि केवल जब तक वह लाभ दे।
गौहत्या जैसे घोर पाप में आज स्वयं कुछ हिंदू भी संलिप्त हैं, जो अपने धर्म की मर्यादाओं और संस्कृति को भूल चुके हैं। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से अनुचित है, बल्कि मानवता के प्रति भी एक अपराध है।
आज हिन्दू समाज अपने इतिहास, गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को भूलता जा रहा है। रामायण, गीता, हनुमान चालीसा और श्रीमद्भागवत जैसे पवित्र ग्रंथ अब घरों से गायब होते जा रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल भगवान श्रीराम को मानना ही नहीं, राम के आदर्शों और मर्यादाओं को भी अपनाना चाहिए।
आज का बच्चा मोबाइल पर घंटों बिताता है, गेम्स खेलता है, सोशल मीडिया में उलझा रहता है, लेकिन उसे रामायण, महाभारत, गीता, भागवत, उपनिषदों या अपने गौरवशाली इतिहास की रत्तीभर भी जानकारी नहीं होती। शास्त्रों के ज्ञान से वंचित और शस्त्रों से अनभिज्ञ यह पीढ़ी, भविष्य में जब चुनौतियों से जूझेगी, तब उसमें वह आत्मबल, चरित्रबल और राष्ट्रप्रेम कहां से आएगा?
आज व्यक्ति की सोच का केंद्र केवल धन कमाना रह गया है — धर्म, नैतिकता, संवेदना और आत्मा की आवाज अब उसकी प्राथमिकता नहीं रह गई। यह स्वार्थ की प्रवृत्ति समाज को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है। पैसा कमाना गलत नहीं है, लेकिन अगर वह धर्म, सत्य और सेवा की भावना के बिना हो, तो उसका कोई स्थायी मूल्य नहीं रह जाता।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली पर 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्रदेव के घमंड को चूर्ण किया था। यह प्रसंग यह सिखाता है कि सच्चा बल और भक्ति जब साथ हो, तब कोई भी संकट अजेय नहीं रह जाता।
जब भी जीवन में कोई संशय या कठिनाई आए, तो मनुष्य को अपने गुरु की शरण में जाना चाहिए। गुरु ही वह प्रकाशपुंज हैं जो अंधकार में दिशा दिखाते हैं और जीवन की उलझनों का समाधान बताते हैं। कथा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल भी उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि भागवत कथा का भव्य आयोजन के लिये समस्त सनातनी भाइयों के तरफ से आयोजन समिति बधाई की पात्र है। कार्यक्रम में आयोजक विजय मिश्र समेत अनेक कार्यकर्ता व्यवस्था में रहे।
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