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रघुनाथपुर में तुलसी विचार मंच द्वारा ढोलक, झाल और मंजीरे की थाप पर हुआ पारंपरिक फगुआ- raghunathpur-buxar-brahmpur


बक्सर । ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत रघुनाथपुर में जब ढोलक, झाल और मंजीरे की थाप पर फगुआ के पारंपरिक गीत शुरू हुए तो हर कोई होली के रंग में रंग गया। आधुनिकता के इस दौर में होली के फूहड़ और अश्लील गीत आने से अब ग्रामीणों द्वारा टोली में गाए जाने वाले पारंपरिक फगुआ गीत जहां विलुप्त होते जा रहे है वहीं रघुनाथपुर में तुलसी विचार मंच ने फिर से इस परंपरा को जीवंत करने का प्रयास किया है। ढोलक और मंजीरे की मंडली बैठने से पहले लोगों ने अबीर गुलाल लगाकर पूजा की उसके बाद पारंपरिक तरीके से फाग की शुरुआत की गई। 




98 साल के बुजुर्ग माधव भगत एवं दीनानाथ पाल ने "सुमिरो शिवशंकर तोहरो नाम" से शुरुआत की बाद में स्थानीय रूपशंकर व्यास ने हास्य, व्यंग  एवं वीर रस शैली के फगुआ गीत से ग्रामीणों को झूमने पर मजबूर कर दिया। "हनुमत लेके अबीर" और "भोला बावुरईलन" आदि होली के लचकों ने समा बांध दिया। बुजुर्गों के साथ साथ युवाओं ने भी झाल और मंजीरों पर खूब संगत किया। गोबिंदा पाल ढोलक पर आधुनिक वाद्य यंत्रों को मात दे रहे थे। फगुआ गा रहे माधो बाबा ने बताया की यह होली में गाया जाने वाला पारंपरिक गीत है। यह मूलरूप से बिहार में गाया जाने वाला गीत है, जिसे लोग टोली बनाकर ढोलक और मंजीरे पर गाते है। पहले बसंत पंचमी से ही होली की खुमारी चढ़ने लगती थी। 



फगुआ का पहला ताल उसी दिन ठोकी जाती है। तुलसी विचार मंच के संयोजक शैलेश ओझा ने कहा फगुआ सिर्फ गीत नहीं हमारी परंपरा और विरासत है। आधुनिकता के साथ हमारी परंपरा और विरासत गायब होते जा रही है। होली के गानों में भी फूहड़ता और अश्लिलता बढ़ती जा रही है। ऐसे में सामाजिक ताने बाने और परंपरा को बनाये रखने के लिए इन्हे फिर से जीवंत करने की जरूरत है क्योंकि असली शुकून, मिठास और आनंद इसी में है।फगुआ मंडली में माधव भगत, दीनानाथ पाल, राम बच्चन पाल, सुरेंद्र पाल, बटेश्वर पाल, आनंद शर्मा, विशाल कुमार सिंह, रूपचंद व्यास, गोविंद पाल, श्रीमानपाल धीरज पांडे, अखिलेश पाल आदि लोग थे।







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