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ईश्वर की भक्ति से जीवन में मिलती है सभी खुशियां - रणधीर ओझा



बक्सर। नगर के सती घाट स्थित लाल बाबा के 16 वें निर्वाण दिवस के अवसर पर आश्रम परिसर में महंत सुरेंद्र तिवारी के देखरेख में आयोजित नव दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन मामाजी के कृपापत्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने शिव-पार्वती विवाह और राम अवतार का प्रसंग सुनाया। 

                   
कथा के दौरान उन्होंने कहा कि जब सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति की द्वारा भगवान शिव की निंदा सुनी तो उसे अपमान सहन नहीं हुआ और प्राण त्याग दिए। इसके बाद जब भू-लोक और स्वर्ग लोक में ताड़कासुर का संकट मंडराने लगा तब उसे ब्रह्मदेव से मिले वरदान को तोड़ने के लिए राजा हिमाचल और मैना देवी के पुत्री के रूप में पैदा हुई सती स्वरूपा पार्वती संग भगवान शिव का विवाह हो जाता है। आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा हुई। शिव-पार्वती का विवाह हो गया। सारे ब्राह्माण्ड में आनंद भर गया। इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती के मिलन से कार्तिकेय का जन्म होता है जो ताड़कासुर का अंत करते है।

आचार्य श्री ने भगवान राम के जन्म की लीला सुनाते हुए कहा कि जगत के पालनहार श्री नारायण का श्रीराम अवतार लेने का मुख्य कारण देवऋषि नारद की ओर से श्रीमण नारायण को दिए हुए 3 श्राप थे, जिनके कारण उन्हें धरती पर अवतरित होना पड़ा। तीन श्रापों में उन्हें पहला मनुष्य रूप में जीवन जीना, पत्नी  के वियोग में भटकना और वानरों के सहयोग के बिना कोई कार्य सिद्ध होना दिए गए। आचार्य श्री ने बताया कि जब धरती अधर्म से कांप उठती है तो वह गाय के रूप में भगवान नारायण के पास जाती है तो श्रीहरि विष्णु को नारद के श्राप की अनुभूति होती है। उसके बाद वह माता लक्ष्मी को कहते हैं कि देवी अब धरती पर राम रूप में जन्म लेने का समय गया है। फिर भगवान नारायण शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या के राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से राम जन्म लेते हैं। इसके साथ ही दशरथ की 2 रानियों कैकेयी सुमित्रा के गर्भ से भी भरत, लक्ष्मण शत्रुघन जन्म लेते हैं। मनुष्य जीवन में अति आवश्यकता है भगवान की कथा श्रवण की। सती जी का जब दूसरा जन्म पार्वती जी के रूप में हुआ तब भगवान शिव के साथ विवाह हुआ। पार्वती जी है श्रद्धा,  भगवान शंकर है विश्वास। दोनों का विवाह के माध्यम से मिलन ही मानो संकेत करता है कि जब तक साधक के हृदय में श्रद्धा रूपी पार्वती और विश्वास रूपी शिव का मिलन नहीं होगा तब तक उसके हृदय में श्री राम भक्ति का उदय नहीं हो सकता। इसीलिए श्री राम जन्म से पूर्व रामचरितमानस में शिव-पार्वती के विवाह का सुंदर वर्णन तुलसी जी के द्वारा लिखा गया।
आचार्य श्री ने अंत में कहा कि कथा से चित्त निर्मल होता है। जीवन अनमोल है, इसकी पूर्णता से परिचित होना ही अपने स्वरूप को पहचानना है। श्रद्धा और विश्वास इसमें परम सहायक है। इंद्रियों के माध्यम से चित्त विषयों की ओर आकर्षित होता है, मन इसका रस लेता है, लेकिन जो भगवान नाम का आश्रय श्रद्धा और विश्वास के साथ लेकर अंर्तमुखी हो जाता है उसका मन जागृत हो जाता है। उसके ज्ञान चक्षु अर्थात तीसरा नेत्र खुल जाता है। और ऐसा व्यक्ति किसी अभाव एवं प्रभाव न जीकर अपने स्वभाव सत् चित् आनंद में जीता है। उन्होंने कहा की जब सच्चे अपमानित होते हैं और मक्कार, झूठे पूजे जाने लगते हैं तो वेदनाओं और पीड़ाओं को हरने के लिए भगवान अवतरित होते हैं। कथा के सफल संचालन में शिवानंद पांडे, धनंजय सिंह, बबलू तिवारी, मुन्ना पांडे, रविराज ,अयोध्या यादव, रणधीर श्रीवास्तव इत्यादि लोगों का विशेष सहयोग रह रहा है।



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