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खसरा- रुबैला एवं नियमित टीकाकरण के लिए घर-घर सर्वे करेंगी आशा कार्यकर्ता



- 12 से 16 दिसंबर तक शून्य से पांच वर्ष तक के आयुवर्ग के बच्चों का किया जाएगा गुणवत्तापूर्ण सर्वे
- सर्वे के बाद छूटे हुए लाभार्थियों का किया जाएगा टीकाकरण

बक्सर | राज्य स्वास्थ्य समिति के निर्देश पर जिले में खसरा- रुबैला  से बचाव के लिए गतिविधियां तेज कर दी गई हैं। इस क्रम में जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी के निर्देश पर जिले के सभी प्रखंडों में सर्वे का काम शुरू किया गया है। जिसमें आशा कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर शून्य से पांच वर्ष तक के आयुवर्ग के बच्चों का गुणवत्तापूर्ण सर्वे किया जा रहा है। यह सर्वे 12 से 16 दिसंबर तक जिले के सभी प्रखंडों में किया जाएगा। जिसके बाद एमआर, जीरो डोज व अन्य टीकों से वंचित लाभार्थी बच्चों की लाइनलिस्टिंग करते हुए सूची तैयार की जाएगी। जिसके बाद उनको टीकाकृत करने के लिए अभियान चलाया जाएगा। हालांकि, इसके लिए राज्य स्वास्थ्य समिति के स्तर  से भी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। जिसमें कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने खसरा-रुबैला के उन्मूलन के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है। 
प्रभावित इलाकों के बच्चों को दी जाएगी टीके की अतिरिक्त डोज :
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, राज्य स्वास्थ्य समिति के निर्देशानुसार जिले में सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है। निर्धारित अवधि में सर्वे का काम पूरा हो जाएगा। जिसके बाद मुख्यालय को रिपोर्ट सौंपी जाएगी। उन्होंने बताया कि मुख्यालय से प्राप्त निर्देश के तहत जिन इलाकों में खसरा-रुबैला संक्रमित बच्चों में 9 माह से नीचे के बच्चों का 10 फीसदी अथवा उससे अधिक मामले पाए जाएंगे, उन क्षेत्रों में 6 माह से 9 माह तक के सभी बच्चों को खसरा- रुबैला का एक टीका आउटब्रेक रिस्पांस इम्यूनाइजेशन के अंतर्गत दिया जाएगा। यह डोज नियमित टीकाकरण सारणी के अतिरिक्त दी जायेगी। जारी पत्र में निर्देशित है कि वैसे क्षेत्र जहां पिछले छह माह में खसरा-रुबैला के संक्रमण की सूचना प्राप्त हुई है, उन क्षेत्रों में खसरा-रुबैला की  एक अतिरिक्त खुराक 9 माह से 5 वर्ष के बच्चों को आउटब्रेक रिस्पांस इम्यूनाइजेशन के अंतर्गत दी जाएगी। 
95 प्रतिशत रुबैला  का वायरस वायुमंडल में फ़ैलता है :  
रुबैला  वायरस से फैलने वाला एक गंभीर रोग है जिसे जर्मन मिजिल्स के नाम से भी जाना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 95 प्रतिशत रुबैला  का वायरस 15 साल तक के बच्चों के माध्यम से वायुमंडल में फ़ैलता रहता है। यह वायरस गर्भवती माता के माध्यम से गर्भस्थ बच्चों पर गंभीर रूप से असर डालता है। जिससे बच्चे में अंधापन, गूंगापन, ह्रदय रोग, गुर्दा रोग एवं इसके साथ ही अपंग पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। इस वायरस से होने वाली विभिन्न समस्याओं को कोनजीनैटल रुबैला  सिंड्रोम (सीआरएस) के भी नाम से जाना जाता है।



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