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अच्युत प्रपन्नाचार्य महाराज कृष्णानंद शास्त्री ने की जिले के लोगों से वैक्सीन लेने के साथ प्रोटोकॉल का पालन करने की अपील- seven october







(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- आगामी सात अक्टूबर जिले में शारदीय नवरात्र शुरू होने वाला है। जिसके बाद दीपावली और छठ जैसे महापर्व भी धूम धाम से मनाए जाएंगे। इन पर्व त्योहारों में अन्य राज्यों समेत विदेशों से लोग अपने घरों में आकर पूजा-पाठ में शामिल होते हैं। वहीं, दूसरी ओर सूबे के अन्य जिलों व राज्यों में कोरोना वायरस का प्रसार फिर से बढ़ने लगा है। ऐसे में प्रशासन के साथ साथ मंदिर व अन्य पूजा कमेटियों और आमजनों के बीच संशय का माहौल उत्पन्न है कि कहीं संक्रमण प्रसार को देखते हुये सरकार फिर से लॉकडाउन का फरमान जारी न कर दे। लेकिन, इस बीच धर्मगुरुओं ने कुछ ऐसे उपय बतायें हैं, जिसका पालन कर हम न केवल केवल खुद को सुरक्षित रख सकेंगे, बल्कि पूजा पाठ में भी किसी प्रकार का व्यावधान उत्पन्न नहीं होगा.
पूजा-पाठ के लिये हमें स्वास्थ रहना जरूरी : 
अच्युत प्रपन्नाचार्य महाराज पंडित कृष्णानंद शास्त्री का कहना है पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जो सनातन धर्म प्रधान है। यह देश 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत। जिसका अर्थ - "सभी प्रसन्न रहें, सभी स्वस्थ रहें, सबका भला हो, किसी को भी कोई भी रोगी या दुखी ना रहे। उन्होंने बताया, कोरोना एक संक्रामक व भयंकर बीमारी है। कोरोना के नियम का अनुपालन इसलिए सर्वाधिक जरूरी है कि हमारा व्रत एवं धर्म-अनुष्ठान खंडित ना हो पाए। यदि किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति से हमारा एवं पूजा सामग्री का स्पर्श हुआ, तो देवताओं को वह पूजा सामग्री स्वीकार ही नहीं होगी और हम पूजन एवं व्रत करने के लायक ही नहीं रहेंगे। अत: पूजा-पाठ के पूर्व उस दौरान हमारा कोविड-19 का पालन करना आवश्यक है।
शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है :
पंडित कृष्णानंद शास्त्री ने बताया, सनातन शास्त्रों में किसी भी व्रत, त्यौहार, यज्ञ, अनुष्ठान एवं धार्मिक कार्यों में मानव शरीर एवं स्वास्थ को प्रथम प्रधानता दी गई। जिसके विषयों का कथन है कि शरीर ही सभी धर्मों का साधन है जब शरीर ही नहीं रहेगा या शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा, तो कोई भी व्रत एवं अनुष्ठान कौन करेगा? उननिषदों में भी '।।शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।।' का उल्लेख है। जिसका अर्थ है - शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। इन्हीं बातों को ध्यान ध्यान में रखते हुये हमें कोविड-19 के सभी प्रोटोकॉल्स का पालन करना चाहिये। किसी भी व्रत एवं अनुष्ठान के लिए व्यक्ति के निरोग रहना बहुत जरूरी है और हम सभी को पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार, यज्ञ-अनुष्ठान इत्यादि में कोविड-19 का अनुपालन करते हुए अपना धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण करना हमारी बाध्यता है।
धार्मिक एवं व्यवहारिक दोनों पहलुओं पर विचार करना होगा :
पंडित कृष्णानंद शास्त्री ने बताया, आज सूबे में जो कोरोना वायरस अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, उसको ध्यान में रखते हुये हमें धार्मिक एवं व्यवहारिक दोनों पहलुओं पर विचार करना ही होगा। उन्होंने कहा, मानव के लिए जितना जरूरी व्रत-त्योहार करना है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी इस कोरोनाकाल में कोविड-19 के नियमों का पालन करना है। व्रत एवं त्यौहार हम तब करेंगे जब स्वस्थ रहेंगे। व्रत एवं त्यौहार में भी पूजा सामग्री देवता तभी स्वीकार करेंगे, जब वह पवित्र रहेगी। वहीं, वायरस का कार्य भी व्यक्ति को अस्वस्थ व वस्तुओं को अपवित्र करना है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि कोविड-19 के नियमों का अनुपालन प्रथम एवं व्रत अनुष्ठान व त्यौहार द्वितीय परिधि में रहकर व्यवहार संचालित करना सर्वथा उपयुक्त है। हम स्वस्थ रहे पवित्र रहे, हमारी पूजा सामग्री पवित्र एवं गुणकारी रहे। इसे सुनिश्चित कर हम व्रत, त्यौहार, यज्ञ, जप-तप आदि करें, यही सर्वथा निष्कंटक मार्ग है।


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