बक्सर । देश में 95 फीसदी सर्कस खत्म हो चुका है। महज 5 फीसदी जिंदा है तो सिर्फ सर्कस चलाने वाले कलाकारों व कुछ ऐसे पेरेंट्स जो अपने बच्चों को सर्कस से आज भी जोड़े रखना चाहते हैं। जिस तरह से इसका क्रेज कम हो रहा है उसे देखकर लग रहा है कि आने वाले समय में कहीं बातों और किताबों में ही न सिमट जाए। इसलिए बक्सर शहर के लोगों से गुरुवार को अपील करते हुए ग्रेट जैमिनी सर्कस के प्रबंधक वेन्यू नायर ने कहा बक्सर शहर में महज कुछ दिनों का मेहमान है ये सर्कस, अपने बच्चों के लिए यादगार बनाने के लिए मौका का जरूर लाभ उठावें। नगर के बुनियादी विद्यालय के पीछे मेला मैदान में हर रोज तीन शो दिखाया जा रहा है।
भारत में महाराष्ट्र के विष्णुपंत छत्रे ने की थी सर्कस की शुरुआत
भारत में सर्कस की शुरुआत महाराष्ट्र के विष्णुपंत छत्रे ने की थी। वे कुर्दूवडी रियासत में चाकरी करते थे। उनका काम था घोड़े पर करतब दिखाकर राजा को प्रसन्न करना। इसके बाद ही वहां के राजा ने भारत की पहली सर्कस कंपनी ‘द ग्रेट इंडियन सर्कस’ खोली। इसमें ये खेल दिखाया जाता। बाद में उनका साथ दिया केरल के कीलेरी कुन्नीकानन ने। वह भारतीय मार्शल आर्ट ‘कालारी पायटू’ के मास्टर थे। 1901 में कोल्लम शहर केे पास गांव चिरक्कारा में उन्होंने बोनाफाइड सर्कस स्कूल की स्थापना की। इसके बाद इनके एक शिष्य ने कुन्ही मेमोरियल सर्कस तथा जिमनास्टिक ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया। दुनिया का सबसे पुराना सर्कस पुराने रोम में था। भारत के मशहूर सर्कस में ग्रेट रॉयल सर्कस (1909), ग्रैंड बॉम्बे सर्कस (1920), ग्रेट रेमन और अमर सर्कस (1920), जेमिनी सर्कस (1951), राजकमल सर्कस (1958), रैंबो सर्कस (1991) और जम्बो सर्कस (1977) हैं।
लोगों को इस कला की कद्र करनी चाहिए और सर्कस देखने आना चाहिए
वेन्यू नायर ने बताया की सर्कस में करतब दिखाने वाले किसी कलाकार से कम नहीं होते। क्योंकि किसी को हंसाना और मनोरंजन करना किसी कला से कम नहीं। लोगों को इस कला की कद्र करनी चाहिए और सर्कस देखने आना चाहिए। उन्होंने बताया- इस बार 70 कलाकार यहां परफॉर्म कर रहे है जिसमे लगभग 10 विदेशी कलाकार है। शहर केस आईटीआई रोड स्थित मेला मैदान में चलने वाली सर्कस में रोजाना दो से ढ़ाई घंटे के तीन शो चल रहे है, जो दोपहर 1 बजे शुरू होता है। इनमें जिमनास्टिक, रिंग डांस, हवाई झूला और अन्य कला भी आर्टिस्ट परफॉर्म कर रहे है।
जब लोग कम आते हैं ताे घाटा तो उठाना पड़ता है
वेन्यू नायर ने बताया की सर्कस का एक कैंप लगाने में काफी खर्चा आता है। ऐसे में जब लोग कम आते हैं तो हमें घाटा उठाना पड़ता है। बस सर्कस बचाने के लिए ही इसे चला रहे हैं। कब बंद हो जाए यह कह नहीं सकते। एक दौर ऐसा था जब सर्कस के शो हाउस फुल जाया करते थे और अगला शो भी वेटिंग में होता था। 1995 में 330 के करीब सर्कस थे और अब गिने चुने ही बचे हैं।
सर्कस की जगह टीवी, इंटरनेट, मॉल ने ली है
उन्होंने कहा की किसी एक वजह से क्रेज कम नहीं हुआ। जब जानवरों को बैन किया गया तो सबसे पहले देखने वालों में कमी आई। 2002 तक तो सभी सर्कस से जानवरों को उठाकर जंगल में छोड़ दिया गया। इसके बाद टीवी, इंटरनेट, मॉल की वजह से क्रेज कम हुआ। अब युवा पीढ़ी मॉल में जाकर तो कभी इंटरनेट पर समय बिताती है। यह उनका मनोरंजन का जरिया हैं।
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