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पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित होगा गोकुल जलाशय , भूमि सीमांकन की कवायद में शुरू- SDM डुमराँव



बक्सर । गोकुल जलाशय को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने की कवायद में प्रशासन जुट गया है। अब इस दियारा क्षेत्र को विकास की कई योजनाओं सुसज्जित किया जाएगा। एसडीएम राकेश कुमार ने मंगलवार को जानकारी देते हुए बताया कि गोकुल जलाशय क्षेत्र को पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिए ब्रह्मपुर अंचल की नापी की प्रक्रिया पूरी हो गई है। चक्की अंचल की नापी हो रही है। जमीन का सीमांकन किए जाने के बाद पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने के कई प्रारूप यहां होंगे। वाटर स्पोर्ट्स, भागड़ में नौका परिचालन, मिथिला हाट की तर्ज पर बाजार सहित अन्य कई पर्यटन की आपार योजनाओं को यहां मूर्त रूप दिया जाएगा। इससे क्षेत्र के लोगों में गोकुल जलाशय के सौंदर्यीकरण और विकास कि आस एक बार फिर जगी है। इस सम्बंध में एसडीएम राकेश कुमार ने कहा कि गोकुल जलाशय में पर्यटन की असीमित संभावनाएं हैं। जिला प्रशासन इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने की तैयारी में जुट गया है। ब्रह्मपुर अंचल की नापी हो गई है, चक्की अंचल की नापी प्रक्रियाधीन है। जल्द ही योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाएगा।
रोमांचक पर्यटन को बढ़ावा

अभी तक इसके विकास के लिए बनी योजनाएं फाइलों में ही सिमट कर रह जाती रही हैं। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि व पिछले अधिकारियों की उपेक्षा नीति के चलते यह महत्वपूर्ण गोकुल जलाशय अभी अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा है। अब यहां के लोगों में नए सिरे से एक उम्मीद की लहर जगी है। बता दें कि ब्रह्मपुर प्रखंड का गोकुल जलाशय एक प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है, जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यह जलाशय न केवल स्थानीय लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है, बल्कि बाहरी पर्यटकों के लिए भी एक बेहतरीन गंतव्य बन सकता है। अब यहां प्रशासन जलाशय में बोटिंग, कयाकिंग और मछली पकड़ने जैसी गतिविधियां शुरू करने की कवायद में जुटा हुआ है, जिससे रोमांचक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

प्रवासी पक्षियों का आगमन

चक्की प्रखंड से लेकर ब्रह्मपर प्रखण्ड के नैनीजोर तक 35 किमी में फैला यह जलाशय विदेशी पक्षियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। दो दशक पूर्व इस विशालकाय जलाशय का महत्व गंगा नदी के समान ही था। ग्रामीणों की माने तो 1952- 53 में गंगा नदी अपनी धारा को मोड़कर यहां से लगभग 8 किलोमीटर उत्तर दिशा में जवही दियारा के उस पार चली गई और तब वह अपनी निशानी के तौर पर एक उप धारा छोड़ गई। इसे ही लोग आज गंगा नदी का भागड़ या गोकुल जलाशय के नाम से जानते हैं। गोकुल जलाशय का शांत और सुरम्य वातावरण इसे प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। यहां सालभर प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है, जिससे यह बर्ड वॉचिंग के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है। 

जीर्णोद्धार की उम्मीद जगी

गंगा नदी की धारा गायघाट, सपही, दल्लुर, चंद्रपुरा उधूरा, महुआर होते हुए नैनीजोर तक पहुंचती है। इस जलाशय से किसान खेतों में लहलहाती फसलों की सिंचाई करने के साथ ही, मछली मार कर अपने परिवार का भरण पोषण भी करते हैं। जलाशय के विस्तृत क्षेत्र में पशुओं के लिए पूरे वर्ष हारा चारा मिलता रहता है। इस क्षेत्र में निवास करने वाले नीलगाय व हिरणों की प्यास बुझाने और उन्हें आश्रय देने का यही एकमात्र जलाशय है, लेकिन जनप्रतिनिधियों और पिछले कई अधिकारियों की उदासीनता के कारण इस जलाशय के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है। अब नए अधिकारियों के कार्यकाल में इस योजना के जीर्णोद्धार की उम्मीद जगी है।

बनेगा प्रमुख पर्यटन स्थल

स्वीकृत योजनाओं के साथ ही प्रशासन यहां जैव विविधता को ध्यान में रखते हुए इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने की तैयारी में जुटी हुई है, जिससे पर्यावरण संरक्षण भी सुनिश्चित होगा। इसके साथ ही जलाशय के किनारे पर्यटकों के लिए कैंपिंग सुविधाएं विकसित करने से यहां रात्रि पर्यटन को भी बढ़ावा देने की योजना पर बात चल रही है। लोगों का मानना है कि यदि गोकुल जलाशय के पास किसी ऐतिहासिक या धार्मिक स्थल को विकसित किया जाए, तो इससे आध्यात्मिक पर्यटन को भी बल मिलेगा। लोग कहते हैं कि गोकुल जलाशय में प्राकृतिक सुंदरता, रोमांच और सांस्कृतिक महत्त्व की अपार संभावनाएं है। यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इसके विकास की दिशा में कार्य करें, तो यह स्थान बिहार का एक प्रमुख पर्यटक स्थल बन सकता है।



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