(बक्सर ऑनलाइन न्यूज़):- इन दिनों बक्सर का एक निजी स्कूल जिसका नाम फाउंडेशन है यह अपने अजीबो गरीब कारनामे को लेकर चर्चा में आ गया हैं। विद्यालय पढ़ाई से ज्यादा फीस वसूली को लेकर गंभीर दिखाई देता है। चंद ऐसे अभिभावक हैं जिनसे फीस जमा करने में देरी हो जाती है तो उनके बच्चों को स्कूल की प्रताड़ना से हर रोज दो चार होना पड़ता है। शिक्षक वैसे बच्चों को क्लास से बाहर घंटो खड़ा करते है, साथ ही कड़ी फटकार के साथ बिना फीस जमा किये विद्यालय में नहीं आने की भी बात कहते है। यहां तक कि परीक्षा के वक्त वैसे छात्रों को एडमिट कार्ड तक जारी नही किया गया और कहा गया कि बिना फीस जमा किये परीक्षा नहीं दे सकते। कई अन्य वर्ग के बच्चों के साथ साथ 8वीं से लेकर 12वीं तक के कई छात्रों को टेस्ट परीक्षा देने से रोक दिया गया।
अभिभवकों की माने तो वे अपने बच्चों को जिस स्कूल पर बेहतर समझ कर भरोसा किया अब उसी विद्यालय का रवैया अभिभावकों को भी विद्यालय में अपमानित करने वाला है तो विद्यालय में बच्चों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा यह बताने की जरूरत नहीं। अपनी मनमानी करना और अभिभावकों से दबंगई से पेश आना शायद अब ऐसे विद्यालयों की नियति बन गई है क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते हैं की उनके खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं है।
कई अविभावकों की माने तो उनके बच्चे लम्बे समय से विद्यालय में पढ़ाई कर रहे है। फीस भी जमा करते है पर कभी कभी हालात सामान्य नहीं होने से देरी हो जाती है ऐसे में थोड़ा बिलम्ब होने पर विद्यालय द्वारा बच्चों को प्रताड़ित करने का मामला बेहद शर्मनाक और गंभीर है। कुछ अभिभावकों का कहना है कि विद्यालय हमें समय देने को भी तैयार नही है और तत्काल पूरी फीस की रकम मांग रहा है। साथ ही साथ नाम काटने की धमकी भी दे रहा है। विद्यालय मानने को तैयार नही है। ऐसी स्थिति में हम बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाएंगे और उन्हें घर में ही रखना पड़ेगा। अभिभावकों का आरोप है कि इस बाबत बात करने पर विद्यालय के प्रिंसिपल अभिभावकों से बदतमीजी से बात करते हैं और बच्चों को स्कूल बिना फीस जमा किए नहीं भेजने की बात करते हुए नाम काटने की धमकी देते हैं।
दरअसल कोरोना काल के दौरान से ही कई अभिभावक जो किसी तरह अपना रोजी रोजगार चलाते हैं उनके सामने बच्चों की पढ़ाई लिखाई को लेकर एक बड़ी समस्या हो गयी है। आमदनी कम और खर्चा के बोझ से दबे ऐसे अभिभावक यदा कदा विद्यालय की फीस समय पर जमा नहीं कर पाते। अभिभावकों की माने तो पहले के अपेक्षा हालात बदले हैं। महगाई चरम पर है और अमदनी कम हुई है, लिहाजा हालात को सामान्य करने में थोड़ा समय लगेगा।
हालांकि इन सब बातों से विद्यालय को कोई लेना देना नही है क्योंकि उसे तो फीस समय पर चाहिए। अभिभावकों का कहना है कि विद्यालय की मनमानी ऐसी है की किताब से लेकर पोषाक तक विद्यालय अपनी तय कीमत पर स्कूल से ही देता है। मतलब साफ है गरीब कमजोर और आर्थिक तंगी से शिकार लोगो के लिए प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ा पाना किसी जंग से कम साबित नहीं हो रहा है। निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ शासन प्रशासन की चुप्पी इसे और बढ़ावा दे रही है।
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