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कुष्ठ के अन्य प्रकारों से 100 गुना अधिक संक्रामक हैं लेप्रोमेटस लेप्रोसी के केस - health-departmnent




- जिले में मिल रहे हैं लेप्रोमेटस लेप्रोसी के भी मरीज, जिनसे कई स्वस्थ्य व्यक्ति हो सकते हैं संक्रमित
- दवा का कोर्स पूरा नहीं करने व पोषण की कमी से लेप्रोमेटस लेप्रोसी के स्टेज में पहुंचते हैं मरीज 

(बक्सर ऑनलाइन न्यूज):-  संक्रमण और छुआछूत से होने वाले रोगों को एक ही तरह का माना जाता है। लेकिन इनमें जो बारीक अंतर है, वो यह है कि संक्रामक रोग श्वांस और हवा के जरिए फैलते हैं। वहीं, छुआछूत की बीमारी एक-दूसरे को छूने और एक-दूसरे की इस्तेमाल की गई चीजों को उपयोग में लाने से होती है। जबकि कुछ रोग ऐसे होते हैं जो सांस और छुआछूत दोनों से फैलते हैं। लोगों में जागरूकता की कमी के कारण कुछ रोगों के प्रति आज भी भ्रम है। जिनमें कुष्ठ रोग भी शामिल है। लोग कुष्ठ को छुआछूत की बीमारी समझते हैं, लेकिन यह एक संक्रामक बीमारी है। कुष्ठ एक ऐसी बीमारी है जो हवा में मौजूद बैक्टीरिया के जरिए फैलती है। हवा में ये बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आती है। कुष्ठ के मरीज के खांसने, छींकने से लेप्रै बैक्टीरिया हवा में डेवलप कर लेता और स्वस्थ्य व्यक्ति हवा में सांस लेकर नमी के उन कणों को अपने अंदर ले लेते हैं तो संभावनाएं बन सकती हैं कि वो भी इस बीमारी से संक्रमित हो जाएं।
जिले में मिल रहे हैं लेप्रोमैटस लेप्रोसी के केस :
हाल में ही बक्सर में राज्यस्तरीय टीम के डॉ. चंद्रमणि विमल ने विभिन्न प्रखंडों में कुष्ठ के मरीजों का जायजा लिया था। इस दौरान राजपुर, सिमरी, इटाढ़ी एवं केसठ प्रखंड में लेप्रोमैटस लेप्रसी के नए केस मिले। कुष्ठ के लेप्रोमेटस लप्रोसी के मरीज में सामान्य कुष्ठ मरीजों की तुलना में संक्रमण फैलाने की 100 गुना अधिक क्षमता होती है। इस तरह के मामलों में मरीजों के शरीर पर गांठ, सूनापन व चकत्तों में सूजन जैसा भी दिखाई देता है। यह सामान्य कुष्ठ का सुपीरियर स्टेज होता है। जो ज्यादातर डिफॉल्टर मरीजों को होता है। यह अन्य कुष्ठ से अधिक संक्रामक माना जाता है। जो मांसपेशियों की कमजोरी, त्वचा पर चकत्ते और गांठों का कारण बनता है। साथ ही, किडनी, नाक और प्रजनन अंगों को अधिक प्रभावित कर सकता है।
दवाओं का पूरा कोर्स करें मरीज :
जिला कुष्ठ निवारण पदाधिकारी डॉ. शालीग्राम पांडेय ने बताया, कुष्ठ के कई प्रकार होते हैं। जिनमें लेप्रोमेटस लेप्रोसी का केस सबसे खतरनाक है। इसके मरीज अन्य स्वस्थ्य मरीजों को जल्दी संक्रमित कर सकते हैं। इसलिए मरीजों को चाहिए कि वे दवाओं का कोर्स पूरा करें। यदि कोई मरीज बीच में ही दवाओं का सेवन बंद कर देता है, तो वो डिफॉल्टर केस बन जाता और उसके शरीर में मौजूद बैक्टीरिया तेजी से पनपने लगती है। वहीं, खानपान की कमी और पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण मरीज के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। जिसके कारण सामान्य कुष्ठ के मरीज लेप्रोमेटस लेप्रोसी के स्टेज में पहुंच जाते हैं।

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