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श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन प्रह्लाद, समुद्र मंथन, वामन अवतार और श्रीकृष्ण जन्म की भावपूर्ण झांकी



बक्सर । नगर के सिविल लाइंस स्थित श्री साईं उत्सव वाटिका लॉन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन शनिवार को वातावरण भक्ति और उल्लास से सराबोर रहा। कृपापात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा जी ने कथा की शुरुआत भक्त प्रह्लाद की अमर कथा से की। उन्होंने कहा कि प्रह्लाद की भक्ति ने अधर्म के प्रतीक हिरण्यकशिपु के साम्राज्य को हिला दिया और यह सिखाया कि विपरीत परिस्थितियों में भी अटूट विश्वास इंसान को डिगने नहीं देता।

इसके बाद समुद्र मंथन की अध्यात्मपूर्ण कथा सुनाई गई। आचार्य श्री ने कहा कि यह केवल पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ दर्शन है – "जीवन में विष और अमृत दोनों मिलते हैं, परंतु धैर्य और विवेक से ही अमृत की प्राप्ति संभव है।"


कथा क्रम में आगे वामन भगवान की लीला का वर्णन किया गया। आचार्य श्री ने बताया कि जब भगवान विष्णु छोटे ब्राह्मण बालक बनकर राजा बलि से तीन पग भूमि माँगते हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड को नाप लेते हैं, तो यह धर्म, दान और विनम्रता की पराकाष्ठा का प्रतीक है।

कथा का चरम बिंदु रहा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव। जैसे ही आचार्य श्री ने कारागार में देवकी-वसुदेव के पुत्र रूप में श्रीकृष्ण के प्राकट्य का वर्णन किया, पूरा पंडाल "नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की!" के उद्घोष से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने दीप जलाए, महिलाएं मंगल गीत गाने लगीं, बच्चे कृष्ण स्वरूप में सजधज कर आए थे और भक्तगण भावविभोर होकर भजन-कीर्तन में लीन हो गए।

कथा के अंत में आचार्य रणधीर ओझा जी ने कहा – “भगवत कथा केवल श्रवण का विषय नहीं, बल्कि जीवन में आत्मसात करने योग्य है। प्रह्लाद की भक्ति, समुद्र मंथन की नीति, वामन की विनम्रता और श्रीकृष्ण का अवतरण हमें सिखाते हैं कि जीवन को धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर कैसे आगे बढ़ाया जाए।”









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