रिपोर्ट- गुलशन सिंह राजपूत
बक्सर । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर है। एक तरफ जहां चुनाव आयोग नामांकन से लेकर मतदान और मतगणना की तिथियों को सुनिश्चित करने में जुट गया है वही दूसरी ओर सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव पर मंथन शुरू करते हुए विधानसभा क्षेत्रों में जनता के बीच सक्रियता बढ़ा दी है। इस कड़ी में हम बात करेंगे बक्सर जिले के क्रमांक संख्या 201 डुमराँव विधानसभा सीट की, आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा-महाराजाओं के शहर डुमराँव विधानसभा सीट अपने आप में विशेष महत्व रखता है। डुमरांव विधानसभा क्षेत्र अपने प्रारंभ काल से ही राजपूत बहुल माना जाता रहा है। हालांकि, बाद में यह अपनी बादशाहत कायम नहीं रख पाया। पहले चुनाव में कांग्रेस ने चर्चित चेहरा व स्वतंत्रता आंदोलन की अगुआई करने वाले चौगाई निवासी सरदार हरिहर सिंह को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में नौ उम्मीदवार अपने भाग्य का फैसला करने के लिए उतरे थे। उस वक्त इस विधानसभा में 57 हजार 231 वोटर थे। अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए 22 हजार 582 वोटर बूथ तक पहुंचे थे। सरदार हरिहर सिंह की तूती के सामने अंबिका ठाकुर की एक नहीं चल पायी। सरदार साहब ने अंबिका ठाकुर को लगभग आधे मतों से हराया था।
इस बार 2025 का विधानसभा चुनाव बिहार के लिए निर्णायक रहने वाला है एक तरफ जहां तेजस्वी यादव महागठबंधन का बिहार में नेतृत्व कर रहे हैं और नीतीश सरकार को अपराध,बेरोजगारी तथा अन्य मुद्दों पर घेर रहे हैं वही बीजेपी-जेडीयू सहित एनडीए के अन्य घटक दलों के नेता 90 के दशक के लालू-राबड़ी शासन काल को जंगलराज बता कर विपक्ष पर हमलावर है। इन सबके बीच जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर भी बिहार बदलने की बात कर रहे हैं और एनडीए तथा महागठबंधन दोनों को सूबे के लिए अनुपयोगी करार दे रहे हैं। हालांकि, सत्ता के दरवाजे तक कौन जाएगा ये जनता तय करेगी। बहरहाल, बक्सर जिले के चारो विधानसभा सीट 2020 चुनाव से ही महागठबंधन के कब्जे में है लेकिन, इस बार एनडीए गठबंधन इन सभी सीटों को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकने की मुड़ में है, हालांकि, सीट जितने के लिए सही उम्मीदवार भी एक मजबूत कड़ी साबित होते है।
NDA की ओर से BJP के खाते में यदि यह सीट जाती है तो सूत्रों के मुताबिक सम्भावित उम्मीदवारों की सूची में पहला नाम वरिष्ठ भाजपा नेता चिलहरी निवासी जितेंद्र सिंह उर्फ कतवारू सिंह (पूर्व जिला परिषद सदस्य) का आ रहा है, ये अपने बेदाग छवि एवं पार्टी के प्रति निष्ठावान होने को लेकर जाने जाते है। दूसरे स्थान पर बीजेपी से पूर्व जिलाध्यक्ष रहे वरिष्ठ भाजपा नेता रामकुमार सिंह का नाम सामने आ रहा है।
वही,यदि डुमराँव से लोजपा(रा.) पार्टी लडेगी तो एनडीए का मजबूत चेहरा के तौर पर वरिष्ठ नेता सोनू सिंह(पूर्व जिला परिषद सदस्य) को उम्मीदवार बनाया जा सकता है, ये युवाओं में लोकप्रिय होने के साथ ही मृदुभाषी भी है वही अपने कुशल नेतृत्व क्षमता के चलते जनता के बीच सकारात्मक राजनीति करने में माहिर हैं, सोनू सिंह की दावेदारी मजबूत होने के पीछे एक और बड़ा कारण है लोजपा(रा.) पार्टी के वरिष्ठ व कद्दावर नेता का इन्हें सानिध्य प्राप्त होना। जबकि, लोजपा(रा.) में लगातार जिलाध्यक्ष पद पर काबिज रहने वाले अखिलेश सिंह भी दावेदार हो सकते है।
जदयू के खाते में यदि दोबारा यह सीट जाती है तो पूर्व प्रत्याशी अंजुम आरा, प्रदेश महासचिव विनोद राय,संजय सिंह राजनेता, रवि उज्ज्वल जैसे नेताओं को मौका मिल सकता है। इस बीच कुछ दिनों सप्ताह पहले तक जदयू के भीष्म पितामह वशिष्ठ नारायण सिंह (दादा) के पुत्र की चर्चा शुरू हुई थी लेकिन, पार्टी के कार्यकर्ताओं में उनके नाम पर घोर विरोध की ज्वाला सुलगने लगी, जिसके बाद इलाके में भी चर्चाएं सुनाई देने लगी कि हेलीकॉप्टर प्रत्याशी डुमराँव को स्वीकार नही होगा. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि पार्टी कोई खतरा इस बार मोल नहीं लेना चाहती जिसके कारण दादा के लड़के को मेन लाइन से लूप लाइन भेज दिया गया।
लगातार चौगाई से जिला परिषद सदस्य चुने जा रहे अरविंद प्रताप शाही उर्फ बंटी शाही डुमराँव क्षेत्र की जनता में मजबूत पकड़ वाले नेता माने जाते है इस बार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो से यह भी उम्मीदवार हो सकते है।
वही निर्दलीय विधायक जीत कर मंत्री बनने वाले डुमराँव के पूर्व विधायक ददन पहलवान भी इस बार के चुनाव में अपना भाग्य आजमाइश जरूर करेंगे। इनका यादव और पिछड़े वर्ग के वोटों पर मजबूत पकड़ माना जाता है।
महागठबंधन की ओर से यदि डुमराँव का सीट राजद के खाते में जाता है तो सम्भावित उम्मीदवार की सूची में वरिष्ठ राजद नेता पप्पू यादव का नाम पहले स्थान पर आ सकता है जबकि,टिकट के रेस में राजद नेता अखिलेश सिंह यादव और रामजी सिंह यादव भी पीछे नहीं है।
अब बात करें महागठबंधन के घटक दल भाकपा माले की तो यदि मौजूदा विधायक डॉ. अजित कुशवाहा को उनकी पार्टी जगदीशपुर विधानसभा सीट से टिकट देने का निर्णय लेती है और फिर भी डुमराँव का सीट भाकपा माले के ही खाते में रहता है तो उस स्थिति में लंबे समय से पार्टी की झंडा ढोकर माले की राजनीत करने वाले मजदूर नेता संजय शर्मा को भाकपा माले से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
इस सब के बीच जनसुराज पार्टी को लेकर क्षेत्र में सक्रिय हुए डुमराँव राज परिवार के शिवांग विजय सिंह विधानसभा चुनाव 2025 में जनसुराज का चेहरा बन सकते है ,मालूम हो कि शिवांग विजय सिंह 2020 के चुनाव में भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके है। वही विभिन्न राजनीतिक दलों में काम कर चुके सामाजिक कार्यकर्ता रवि सिन्हा भी जनसुराज पार्टी के लिए मेहनत करते नजर आ रहे हैं ऐसे में टिकट के रेस में रवि सिन्हा भी आगे चल रहे हैं।
नजर डालें 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव पर तो नतीजे कुछ प्रकार से रहे :
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार भाकपा माले नेता डॉ. अजित कुशवाहा बने थे जिन्होंने 40.76% वोट शेयर से 71,320 मत प्राप्त कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी NDA उम्मीदवार जदयू नेत्री अंजुम आरा को 24,415 मतों के भारी अंतर से पराजित किया था और जनता का जनादेश पाकर डुमराँव के नए विधायक के रूप में चुने गए थे। वही एनडीए गठबंधन की उम्मीदवार अंजुम आरा को 26.81% वोट शेयर हासिल कर कुल 46,905 मत प्राप्त हुए थे।
जबकि तीसरे नम्बर पर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अरविंद प्रताप शाही उर्फ बंटी शाही को 6.58% वोट शेयर हासिल हुए थे इस तरह उन्हें कुल 11,517 मत प्राप्त हुए थे।
डुमरांव विधान सभा का कई महत्वपूर्ण लोगों ने नेतृत्व किया है। इस सीट पर बराबर कांग्रेस का दबदबा रहा है। वर्ष 1951 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में सरदार हरिहर सिंह निर्वाचित हुए। 1957, 62 में कांग्रेस से गंगा प्रसाद सिंह चुनाव में विजयी हुए थे। 1967 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फिर सरदार हरिहर प्रसाद सिंह निर्वाचित हुए। 1969, 72 के चुनाव में कांग्रेस ने सरदार हरिहर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। 1977 के चुनाव में सीपीआई के रामाश्रय सिंह निर्वाचित हुए। लेकिन, फिर 1980 के चुनाव में ही राजा राम आर्य ने कांग्रेस से सीट को अपनी झोली में डाल लिया। 1981 के मध्यावधि चुनाव व 83 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विजय नारायण भारती ने सीट पर काबिज रहे। 1985 में बसंत सिंह कांग्रेस से जीते। लेकिन इसके बाद से 1990 से बदले राज्यस्तरीय राजनीति का असर हुआ और जनता दल, निर्दलीय प्रत्याशी काबिज हुए।
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